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भगवती सूत्र - श. २५ उ. ६ संयम स्थान
1. सागरोपम की स्थिति में उत्पन्न होते हैं ।
६८ प्रश्न - नियंटस्स-- पुच्छा ।
६८ उत्तर - गोयमा ! अजहण्णमणुकोसेणं तेत्तीसं सागरोमाई १३ ।
भावार्थ - ६८ प्रश्न - हे भगवन् ! देवलोक में उत्पन्न होते हुए निग्रंथ, कितने काल की स्थिति में उत्पन्न होते हैं ?
६८ उत्तर - हे गौतम! अजघन्यानुत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की स्थिति में उत्पन्न होते हैं ।
विवेचन - पुलाक के विषय में इन्द्र, लोकपाल आदि देव पदवी विषयक प्रश्न का जो उत्तर दिया है, वह ज्ञानादि की अविराधना और लब्धि का प्रयोग न करने वाले पुलाक की अपेक्षा समझना चाहिये। वहीं इन्द्रादि रूप से उत्पन्न होता है । विराधना कर के तो भवनपति आदि देवों में उत्पन्न होता है। पहले देवोत्पत्ति के प्रश्न उत्तर में जो पुलाक का मात्र वैमानिकों में ही उपपात कहा है, वह अविराधक पुलाक की अपेक्षा समझना चाहिये । क्योंकि संभ्रम आदि की विराधना करने वालों का उपपात तो भवनपति आदि
ही होता है ।
यहां पुलाक आदि पांच का जो देवों में उपपात बताया है, वह देवलोक विषयक प्रश्न होने से देवों में उत्पन्न होने का बताया है, अन्यथा विराधक तो पुलाक आदि चारों ही गतियों में उत्पन्न हो सकते हैं ।
स्नातक की तो केवल सिद्ध गति है । इसीलिये उसके विषय में इन्द्रादिरूप पदवी का और स्थिति का प्रश्न नहीं किया है, क्योंकि सिद्धगति में इन्द्रादि पदवियां नहीं होती और वहां की स्थिति एक जीव की 'सादि अनन्त' होती है ।
संयम - स्थान
९९ प्रश्न - पुलागस्स णं भंते ! केवइया संजमट्टाणा पण्णत्ता ?
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