________________
भगवती सूत्र-श. २५ उ. ६. कल्प द्वार
३३६१
२० प्रश्न-णियंठे णं भंते ! किं सरागे होजा-पुच्छा। २० उत्तर-गोयमो ! णो सरागे होजा, वीयरागे होजा।। भावार्थ-२० प्रश्न-हे भगवन् ! निग्रंथ सराग होते हैं या वीतराग ? २० उत्तर-हे गौतम ! सराग नहीं, वीतराग होते है ।
२१ प्रश्न-जइ वीयरागे होजा किं उवसंतकसायवीयरागे होजा, खीणकसायवीयरागे होज्जा ? __ २१ उत्तर-गोयमा ! उवसंतकमायवीयरागे वा होजा, खीणकसायवीयरागे वा होजा । सिणाए एवं चेव । णवरं णो उवसंतकसायवीयरागे होजा, खीणकसायवीयरागे होजा ३ ।
भावार्थ-२१ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि निग्रंथ वीतराग होते हैं, तो क्या उपशान्तकषाय वीतराग होते हैं या क्षीण-कषाय वीतराग होते हैं ?
२१ उत्तर-हे गौतम ! उपशान्त-कषाय वीतराग भी होते हैं और क्षीण-कषाय वीतराग भी होते हैं। इसी प्रकार स्नातक भी। किन्तु स्नातक उपशान्त-कषाय वीतराग नहीं होते, केवल क्षीण-कषाय वीतराग ही होते है ।
विवेचन-सराग का अर्थ 'सकषाय' है । यह सकषायत्व दसवें गुणस्थान तक होता है ।
कल्प द्वार
___- २२ प्रश्न-पुलाए णं भंते ! किं ठियकप्पे होज्जा, अट्ठियकप्पे होजा?
२२ उत्तर-गोयमा ! ठियकप्पे वा होजा, अट्ठियकप्पे वा होजा।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org