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भगवती सूत्र-श. - ५ उ. ४ अस्तिकाय के मध्य-प्रदेश
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उत्कृष्ट आठ प्रदेश में समा सकते हैं, किन्तु सात प्रदेशों में नहीं समाते ।
_ 'हे भगवन ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत विचरते हैं।
"विवेचन--धर्मास्तिकाय के आठ मध्य-प्रदेश, आठ रुचक-प्रदेशवर्ती होते हैं-ऐमा चूर्णिकार कहते हैं । वे रुचक-प्रदेश मेरु के मूलभाग के मध्यवर्ती हैं । यद्यपि धर्मास्तिकाय आदि लोक प्रमाण होने से उनका मध्यभाग रुचक-प्रदेशों से असंख्यात योजन दूर रत्नप्रभा के अवकाशान्तर में आया हुआ है रुचकवर्ती नहीं है, तथापि दिशा और विदिशाओं के उत्पत्ति स्थान रुचक-प्रदेश होने से धर्मास्तिकायादि के मध्य रूप से उनकी विवक्षा की होऐसा संभावित है।
प्रत्येक जीव के आठ रुचक-प्रदेश होते हैं। वे उस जीव के शरीर के ठीक मध्यभाग में होते हैं । इसलिये वे मध्य-प्रदेश कहलाते हैं । संकोच और विकाश (विस्तार)जीवप्रदेशों का धर्म होने से उनके मध्यवर्ती आठ प्रदेश एक आकाश प्रदेश से ले कर छह आकाश-प्रदेशों में रह सकते हैं और उत्कृष्ट आठ आकाश-प्रदेशों में रहते हैं । परन्तु सान आकाश-प्रदेशों में नहीं रहते, क्योंकि वस्तु-स्वभाव ही इस प्रकार का है ।
॥ पचीसवें शतक का चौथा उद्देशक सम्पूर्ण ॥
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