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________________ भगवती सूत्र-श. - ५ उ. ४ अस्तिकाय के मध्य-प्रदेश ३३३५ उत्कृष्ट आठ प्रदेश में समा सकते हैं, किन्तु सात प्रदेशों में नहीं समाते । _ 'हे भगवन ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत विचरते हैं। "विवेचन--धर्मास्तिकाय के आठ मध्य-प्रदेश, आठ रुचक-प्रदेशवर्ती होते हैं-ऐमा चूर्णिकार कहते हैं । वे रुचक-प्रदेश मेरु के मूलभाग के मध्यवर्ती हैं । यद्यपि धर्मास्तिकाय आदि लोक प्रमाण होने से उनका मध्यभाग रुचक-प्रदेशों से असंख्यात योजन दूर रत्नप्रभा के अवकाशान्तर में आया हुआ है रुचकवर्ती नहीं है, तथापि दिशा और विदिशाओं के उत्पत्ति स्थान रुचक-प्रदेश होने से धर्मास्तिकायादि के मध्य रूप से उनकी विवक्षा की होऐसा संभावित है। प्रत्येक जीव के आठ रुचक-प्रदेश होते हैं। वे उस जीव के शरीर के ठीक मध्यभाग में होते हैं । इसलिये वे मध्य-प्रदेश कहलाते हैं । संकोच और विकाश (विस्तार)जीवप्रदेशों का धर्म होने से उनके मध्यवर्ती आठ प्रदेश एक आकाश प्रदेश से ले कर छह आकाश-प्रदेशों में रह सकते हैं और उत्कृष्ट आठ आकाश-प्रदेशों में रहते हैं । परन्तु सान आकाश-प्रदेशों में नहीं रहते, क्योंकि वस्तु-स्वभाव ही इस प्रकार का है । ॥ पचीसवें शतक का चौथा उद्देशक सम्पूर्ण ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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