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भगवती सूत्र-श. २५ उ. ४ द्रव्यादि की अपेक्षा युग्म प्ररूपणा
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कडजुम्मे-पुच्छा।
२९ उत्तर-गोयमा ! सिय कडजुम्मे जाव सिय कलिओगे। एवं एगिदियवज्जं जाव वेमाणिए ।
भावार्थ-२९ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव आभिनिबोधिक ज्ञान-पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म है? . २९ उत्तर-हे गौतम ! कदाचित् कृतयुग्म यावत् कल्योज है । इस प्रकार एकेन्द्रिय को छोड़ कर वैमानिक तक ।
३० प्रश्न-जीवा णं भंते ! आभिणियोहियणाणपनवेहिपुन्छ।
३० उत्तर-गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलिओगा । विहाणादेसेणं कडजुम्मा वि जाव कलिओगा वि । एवं एगिदियवज्ज जाव वेमाणिया । एवं सुयणाणपजवेहि वि । ओहि. णाणपंजवेहि वि एवं चेव । णवरं विगलिंदियाणं णत्थि ओहिणाणं । मणपजवणाणं पि एवं चेव, णवरं जीवाणं मणुस्साण य, सेसाणं. पत्थि ।
भावार्थ-३० प्रश्न-हे भगवन् ! जीव (बहुत जीव) आभिनिबोधिक ज्ञान-पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म है. ? ।
___ ३० उत्तर-हे गौतम ! ओघादेश से कदाचित् कृतयुग्म यावत् कल्योज हैं। विधानादेश से कृतयुग्म भी यावत् कल्योज भी होते हैं । इस प्रकार एकेन्द्रियों को छोड़ कर वैमानिक तक । इसी प्रकार श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान के पर्यायों से भी है । भेद यह है कि विकलेन्द्रिय जीवों के अवधिज्ञान नहीं होता।
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