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________________ भगवती सूत्र-श. २५ उ. ४ द्रव्यादि की अपेक्षा युग्म प्ररूपणा ३२७७ कडजुम्मे-पुच्छा। २९ उत्तर-गोयमा ! सिय कडजुम्मे जाव सिय कलिओगे। एवं एगिदियवज्जं जाव वेमाणिए । भावार्थ-२९ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव आभिनिबोधिक ज्ञान-पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म है? . २९ उत्तर-हे गौतम ! कदाचित् कृतयुग्म यावत् कल्योज है । इस प्रकार एकेन्द्रिय को छोड़ कर वैमानिक तक । ३० प्रश्न-जीवा णं भंते ! आभिणियोहियणाणपनवेहिपुन्छ। ३० उत्तर-गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलिओगा । विहाणादेसेणं कडजुम्मा वि जाव कलिओगा वि । एवं एगिदियवज्ज जाव वेमाणिया । एवं सुयणाणपजवेहि वि । ओहि. णाणपंजवेहि वि एवं चेव । णवरं विगलिंदियाणं णत्थि ओहिणाणं । मणपजवणाणं पि एवं चेव, णवरं जीवाणं मणुस्साण य, सेसाणं. पत्थि । भावार्थ-३० प्रश्न-हे भगवन् ! जीव (बहुत जीव) आभिनिबोधिक ज्ञान-पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म है. ? । ___ ३० उत्तर-हे गौतम ! ओघादेश से कदाचित् कृतयुग्म यावत् कल्योज हैं। विधानादेश से कृतयुग्म भी यावत् कल्योज भी होते हैं । इस प्रकार एकेन्द्रियों को छोड़ कर वैमानिक तक । इसी प्रकार श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान के पर्यायों से भी है । भेद यह है कि विकलेन्द्रिय जीवों के अवधिज्ञान नहीं होता। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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