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भगवती सूत्र - श. २५ उ. ४ परमाणु आदि का अल्प-बहुत्व
सर्वकम्प भी हैं, वैमानिक पर्यन्त ।
विवेचन - सिद्धत्व की प्राप्ति के प्रथम समयवर्ती जीव, 'अनन्तर सिद्ध' कहलाते हैं, क्योंकि उस समय एक समय का भी अन्तर नहीं होता। जो सिद्धत्व के प्रथम समय में वर्तमान सिद्ध जीव हैं, उनमें कम्पन होता हैं, क्योंकि सिद्धि गमन का समय और सिद्धत्व प्राप्ति का समय एक ही होने से और सिद्धि गमन के समय गमन क्रिया होने से उस समय वे सकम्प होते हैं । जिन्हें सिद्धत्व प्राप्ति होने के पश्चात् समयादि का अन्तर पड़ता है, वे 'परम्पर सिद्ध' कहलाते हैं । वे निष्कम्प होते हैं ।
जो जीव मोक्ष जाने के पहले शैलेशी अवस्था को प्राप्त होते हैं, वे योगों का सर्वथा निरोध कर देते हैं । अतः वे उस समय निष्कम्प होते हैं ।
सकम्प होते हैं । क्योंकि उनका पूर्व शरीर में रहा निष्कम्प (निश्चल) होता है और जो गति क्रिया कारण वह देशतः सकम्प कहा गया है ।
जो संसारी जीव मर कर ईलिका गति से उत्पत्ति स्थान में जाते हैं, वे देशत: हुआ अंश, गति क्रिया रहित होने से सहित है, वह अंश सकम्प है । इस
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विग्रह गति को प्राप्त जीव अर्थात् जो मर कर विग्रहगति से या ऋजुगति से उत्पत्ति स्थान को जाता है, वह गेंद की गति के समान सर्वात्म रूप से उत्पन्न होता है । इसलिये वह सर्वतः सकम्प होता है। जो विग्रह-गति को प्राप्त नहीं है, वे गति में अवस्थित हैं । . वे शरीर में रहते हुए मरण-समुद्घात कर के ईलिका गति से उत्पत्ति क्षेत्र को अंशतः स्पर्श करते हैं । इसलिये वे देशतः सकम्पक होते हैं । अथवा स्वक्षेत्र में रहे हुए जीव अपने हाथ, पैर आदि अवयवों को इधर-उधर चलाते हैं, इस कारण वे देशतः सकम्पक हैं ।
परमाणु आदि का अल्प - बहुत्व
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३८ प्रश्न - परमाणुपोग्गला णं भंते! किं संखेज्जा असंखेज्जा
अनंता ?
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