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भगवती सूत्र - श. २५ उ. ४ द्रव्यादि की अपेक्षा युग्म प्ररूपणा
मन:पर्ययज्ञान के पर्यायों के विषय में भी इसी प्रकार है, परन्तु वह ओघिक जीवों और मनुष्यों को ही होता है, शेष दण्डकों में नहीं होता ।
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३१ प्रश्न-जीवे णं भंते! केवलणाणपज्जवेहिं किं कडजुम्मेपुच्छा ।
३१ उत्तर - गोयमा ! कडजुम्मे, णो तेओगे, णो दावरजुम्मे, णो कलिओगे । एवं मणुस्से वि. एवं सिद्धे वि ।
भावार्थ - ३१ प्रश्न - हे भगवन् ! जीव, केवलज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म है ० ?
३१ उत्तर - हे गौतम ! कृतयुग्म तो है, किन्तु ज्योज, द्वापरयुग्म और कल्योज नहीं है । इसी प्रकार मनुष्य और सिद्ध के विषय में भी है ।
३२ प्रश्न - जीवा णं भंते! केवलणाण - पुच्छा ।'
३२ उत्तर - गोयमा ! ओघा देसेण वि विहाणा देसेण वि कडजुम्मा, णो तेओगा, णो दावरजुम्मा, णो कलिओगा । एवं मणुस्सा वि, एवं सिद्धा वि ।
भावार्थ - ३२ प्रश्न - हे भगवन् ! जीव ( बहुत जीव ) केवलज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म हैं० ?
३२ उत्तर - हे गौतम ! ओघादेश और विधानादेश से कृतयुग्म हैं, किन्तु योज, द्वापरयुग्म और कल्योज नहीं हैं । इसी प्रकार मनुष्य और सिद्धों के विषय में भी है ।
३३ प्रश्न - जीवे णं भंते! मइअण्णाणपज्जवेहिं कडजुम्मे० ?
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