________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । . . (५१) उमाकुसुम्भजं चोष्णं त्वग्दोषकफपित्तकृत् ॥ ..
वसा मज्जा च वातनी बलपित्तकफप्रदौ ॥६१॥ अलसी और कुसुभाका तेल गरम है, और त्वग्दोष कफ पित्तको करता है और मजा बातको नाशती है, और बल पित्त कफको देती है ।। ६१ ॥
मांसानुगस्वरूपौ च विद्यान्मेदोऽपि ताविव ॥
दीपनं रोचनं मयं तक्षिणोष्णं तुष्टिपुष्टिदम् ॥ ६२॥ यह जिस प्राणीका जैसा मांस हो उसीके अनुसार गुणवाले हैं, और इन दोनोंकी तरह मेदमें भी गुण है, मदिरा दीपन है रोचन है तीक्ष्ण है गरम है तुष्टि और पुष्टिको देती है ।। ६२ ।।
सस्वादुतितकटुकमम्लपाकरसं सरम् ॥
सकषायं स्वरारोग्यप्रतिभावर्णकृल्लघु ॥ ६३॥ स्वागु पदार्थ संयुक्त मदिरा तिक्त है, कटु है और खट्टे पाकवाली है, और खट्टे रसवाली है, सर है और कषाय पदार्थके संग मदिरा स्वर आरोग्य कांति वर्णको करती है और हलकी है।६३॥
नष्टनिद्रातिनिद्रेभ्यो हितं पित्तास्रदूषणम् ॥
कृशस्थूलहितं रूक्षं सूक्ष्म स्रोतोविशोधनम् ॥ ६४॥ और नष्टनींदवालोंको और अतिनींदवालोंको हित है, और रक्तपित्तको दूषित करै है कृश और स्थूल मनुष्यके अर्थ हित है, रूक्ष है सूक्ष्म है और स्रोतोंको शोधती है ॥ ६४ ॥
वातश्लेष्महरं युक्त्या पीतं विषवदन्यथा ॥
गुरु त्रिदोषजननं नवं जीर्णमतोऽन्यथा ॥६५॥ युक्तिकरके पानकरी मदिरा बात और कफको हरती है, और अन्यथा पानकरी मदिरा विषके समान है ॥ ६५॥
पेयं नोष्णोपचारेण न विरक्तक्षुधातुरैः॥
नात्यर्थतीक्ष्णमृद्वल्पसंभारं कलुषं न च ॥ ६६ ॥ और गरम उपचार करनेवालेको और जुलाबलियेको और क्षुधासे पीडितको मदिरा पानी नहीं और मदिराको अति पीवै नहीं और तीक्ष्णमदिराको न पीवै कोमल और अल्प संभार अर्थात् न्यूनद्रव्ययुक्त मदिराको पावै और मैली मदिराको पीवै नहीं ॥ ६६ ॥
गुल्मोदरा ग्रहणीशोषहृत् स्नेहनी गुरुः ॥
सुराऽनिलनी मेदोऽसृस्तन्यमूत्रकफावहा ॥६७ ॥ मदिरा; गुल्म उदररोग बवासीर संग्रहणी शोषको हरतीहै, और स्नेहित करतीहै, भारी है वातको नाशतीहै और मेद रक्त दूध मूत्र कफको देतीहै ॥ ६७ ॥
For Private and Personal Use Only