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(७८८)
अष्टाङ्गहृदयेतिसमें भ्रमताहै और चिंताका आरंभ होताहै वातके उन्मादमें कृशपना ॥ ६॥ बिना प्रसंगमें रोना, पुकारना, हँसना, मुसकराना, नांचना, गाना, बजाना, वाणी, अंग इन्होंका विक्षेप और . आस्फोटन ॥ ७ ॥ और आनंदकरके वांसकी वीणा आदिका बारंबार बजाना और निरंतर मुखसे झागोंका गिरना और गमन और बहुत बोलना ॥ ८ ॥ और नहीं सिंगारने लायक वस्तुओंकरके शृंगार बनाना नहीं सवारीकरने लायकोंपै सवारी करना और भोजनकी वस्तुओंमें इच्छाकरनी और जो नहीं मिले तो अपमान मानना ॥ ९॥ और गोल २ रूप लालनेत्र रहैं और अन्न जरजावे तब रोगकी उत्पत्तिहोवे ये लक्षण होजातेहैं ॥
पित्तात्सन्तर्जनं क्रोधो मुष्टिलोष्टाद्यभिद्रवः ॥१०॥ शीतच्छायोदकाकांक्षा नग्नत्वं पीतवर्णता ॥
असत्यज्वलनज्वालातारकादीपदर्शनम् ॥ ११ ॥ और पित्तसे उपजे उन्मादमें ताडना करनी क्रोध होना और मुष्टिकरके लोष्ट आदिकोंका अभिद्रव करना ॥ १० ॥ और शीतलता छाया जल इन्होंकी इच्छारक्खे नंगा रहै, पीलावर्ण होजावे और बिनाहुए जलताअग्नि तारा दीपक इन्होंको देखे ॥ ११ ॥
कफादरोचकश्छर्दिरल्पेहाहारवाक्यता॥स्त्रीकामता रहःप्रीतिलालासिंघाणकनुतिः ॥१२॥बैभत्स्यं शौचविद्वेषो निद्राश्वय थुरानने ॥ उन्मादो बलवान्रात्रौ भुक्तमात्रे च जायते ॥१३॥
और कफसे उपजे उन्मादमें अरुचि छार्द ये होवें और आहार चेष्टा बोलना ये अल्पहोवें स्त्रियोंकी इच्छा और एकांतमें प्रीतिरखै और लार नासिका जल ये पडते रहैं ॥ १२ ॥ झिडकना पवित्र तामें वैरभाव, निद्राआवे और मुखपै शोजा होवै और रात्रीमें तथा भोजनकरतेही अधिक उन्माद, और बलवान् होजावे ॥ १३ ॥
सर्वायतनसंस्थानसन्निपाते तदात्मकम् ॥
उन्मादं दारुणं विद्यात्तं भिषक्परिवर्जयेत् ॥१४॥ और सन्निपातसे उपजे उन्मादमें सब निमित्त और सबोंके लक्षण मिलतेहैं यह दारुण उन्माद वैद्योंको बर्जदेना चाहिये ॥ १४ ॥
धनकान्तादिनाशेन दुःसहेनाभिषगवान्॥पाण्डुर्दीनो मुहुर्मुह्यन्हाहेति परिदेवते ॥ १५॥ रोदित्यकस्मान्म्रियते तद्गुणान्बहु मन्यते ॥शोकक्लिष्टमना ध्यायञ्जागरूको विचेष्टते ॥ १६ ॥
और धन स्त्री इत्यादिकोंके नाशसे दुस्सह करके अभिषंगवान् उन्माद होजाताहै इसमें पीला और गरीब मुख होजाताहै और बारंबार मोहको प्राप्त होजावे हाहा विलापकरै ॥ १५ ॥ और रोवे और अचानकसे मरेहुयेके गुणोंको बहुतसा यादकरै और शोकसे क्लिष्ट मनवालाहुआ ध्यान करताहुआ जागतारहै और चेष्टासे रहितरहै ॥ ११ ॥
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