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(८७२)
अष्टाङ्गहृदयेकफके प्रतिश्यायमें लंघन और सफेद शरसोंसे शिरका लेप अथवा जवाखारसे संयुक्तकिये घृतका पान करके वमन करना ये सब हितहैं ॥ १३ ॥ सेंधानमक सूंठ मिरच पीपल वायविडंग कूडाकी छाल जीरा इन्होंको बकरीके मूत्रमें पीस नस्य लेना हितहै ॥
कटुतीक्ष्णैघृतैर्नस्यैः कवलैः सर्वजं जयेत् ॥१४॥ और कड्डुवे तथा तीक्ष्णरूप घृत नस्य ग्रास इन्होंकरके सन्निपातके प्रतिश्यायको जीते ॥१४॥
यक्ष्मकृमिक्रम कुर्वन्पाययेदुष्टपीनसे ॥ राजरोग और कृमिरोगको हरनेवाले औषधको दुष्ट पीनसमें पान करावै ।। व्योषोरुबूककृमिजिदारुमाद्रीगदे गुदम् ॥१५॥ वार्ताकबीजं त्रिवृता सिद्धार्थः पूतिमत्स्यकः॥ अग्निमन्थस्य पुष्पाणि पीलुशिग्रुफलानि च ॥ १६ ॥ अश्वविडसमूत्राभ्यां बस्तिमत्रेण चैकतः ॥ क्षौमगर्भा कृतां वर्ति धूमं घ्राणास्यतःपिवेत्॥१७॥
और सूंठ मिरच पीपल अरंड वायविडंग देवदार काला अतीश कूट हिंगणवेट वार्ताकुसंज्ञक ॥ १५ ॥ कटहलीके बीज निशोत सफेदसरसों पूतिकरंजुआ मछली अरनीके फूल पीलुफल सहोजनाके फल ॥ १६ ॥ घोडाकी लीदका रस और मूत्र हाथीका मूत्र इन्होंको मिला रेशमी वस्त्रकी बनाई बत्तीको इन सबोंके कल्कसे लेपितकर अग्निसे जलाय नासिकासे अथवा मुखसे पीवै !॥ १७ ॥
क्षवथौ पुटपाकाख्ये तीक्ष्णैः प्रधमनं हितम् ॥ छींक रोगों और पाकरोगमें तीक्ष्ण औषधोंकरके प्रधमन करना योग्य है ।।
शुण्ठी कुष्ठकणावेल्लद्राक्षाकल्ककषायवत् ॥१८॥
साधितं तैलमाज्यं वा नस्यं क्षवपुटप्रणुत् ॥ और सूंठ पीपल वायविडंग दाख इन्होंके कल्क और काथसे ॥ १८ ॥ साधित किया तेल अथवा घृत नस्य करके शवरोगको और पुटरोगको नाशताहै ॥
नासाशोषे बलातैलं पानादौ भोजनं रसैः॥ १९॥
स्निग्धो धूमस्तथा स्वेदो नासानाहेऽप्ययं विधिः॥ ___ और नासाशोषमें पान और नभ्य आदिमें बलाका तेल हितहै और मां के रसोंके संग भोजन ॥ १९ स्निग्ध धूवा तथा स्निग्ध स्वेद ये सब हितहैं और नासानाहरोगमेंभी यही विधिहै ।।
पाके दीप्तौ च पित्तन्ने तीक्ष्णं नस्यादिससतौ ॥ २०॥ __ और नासापाकमें तथा दीप्तिरोगमें पित्तको नाशनेवाला औषध हितहै नासालावमें तीक्ष्णरूप नस्य आदि हितहैं ॥ २० ॥
कफपीनसवत्पूतिनासापीनसयोः क्रिया॥ पूतिनासा और अपीनसमें कफकी पीनसकी तरह चिकित्सा करनी योग्यहै ॥
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