________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (९६७) कपाले त्रिफलां दग्ध्वां सघृतारोपणं परम् ॥ ठीकरेमें त्रिफलाको दग्धकर पीछे घृतमें मिलावै यह उत्तम रोपणहै ॥ ___सामान्यं साधनमिदं प्रतिदोषं तु शोफवत् ॥ ६॥ यह सामान्य चिकित्सा कही और दोषके प्रति शोजाकी समान चिकित्सा जाननीहै ॥ ६॥
न च याति यथा पाकं प्रयतेत तथा भृशम् ॥
पक्कैः स्नायुशिरामांसैः प्रायो नश्यति हि ध्वजः॥ ७॥ जैसे पाकको नहीं प्राप्तहो तैसे अत्यंत यत्न करना योग्यहै, क्योंकि पकेहुये स्नायु नाडी मांससे प्रायतासे लिंग नष्ट होजाताहै ॥ ७ ॥
अर्शसां छिन्नदग्धानां क्रिया कार्योपदंशवत् ॥ छिन्नहुये और दग्धहुये अर्शक अर्थात् मस्सोंकी उपदंशकी समान चिकित्सा करनी योग्यहै ॥
सर्षपा लिखिताः सूक्ष्मैः कषायैरवचूर्णयेत् ॥ ८॥
तैरेवाभ्यञ्जनं तैलं साधयेद्रणरोपणम् ॥ और शस्त्रकरके लिखितकरी सर्पपिका फुनसीको इसीप्रकरणमें पहिले कहेहुये जामनआदि वृक्षोंके काथकरके अवचूर्णित करै ॥ ८ ॥ और तिसी काथकरके तेलको साधित करै यह तेल मालिश करनेसे घावको रोकताहै ॥
क्रियेयमवमन्थेऽपि रक्तं स्राव्यं तथोभयोः॥९॥ और अवमंथमेंभी यही औषध करना योग्यहै, परंतु सर्पपिका और अवमंथमें रक्तका निकालना योग्यहै ॥ ९॥
कुम्भिकाया हरेद्रक्तं पक्कायां शोधिते व्रणे ॥
तिन्दुकत्रिफलारोधैर्लेपस्तैलञ्च रोपणम् ॥१०॥ कुंभिकामें रक्तको निकाले और पकीहुई कुंभिकामें प्रथम घावको शोधित कर पीछे तेंदु त्रिफला लोधका लेप और इन्होंहीसे सिद्धकिया तेल रोपण होताहै ॥ १० ॥
अलज्यां स्त्रुतरक्तायामयमेव क्रियाक्रमः॥ अलजीमें प्रथम रक्तका निकास करके पीछे यही क्रिया क्रम करना योग्यहै ॥
उत्तमाख्यान्तु पिटिकां संछिद्य बडिशोद्धृताम् ॥ ११॥
कल्कैश्चर्णैः कषायाणां क्षौद्रयुक्तैरुपाचरेत्॥ और बडिश लोहेके टेढे काटेसे उद्धृत करी उत्तमाख्य पिटिकाको संछेदित कर ॥ ११ ॥ कषायोंके कल्क और चूर्नामें शहदमिलाके उपाचरित करै।
क्रमः पित्तविसर्पोक्तः पुष्करव्यूढयोहितः॥१२॥ त्वक्पाके स्पर्शहान्याञ्च सेचयेत्
For Private and Personal Use Only