Book Title: Ashtangat Rudaya
Author(s): Vagbhatta
Publisher: Khemraj Krishnadas

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Page 1098
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (१०३५). इन्हों को मिलाके कृष्ण लोहेके संग साधितकरै ।।७१।। मलसे वर्जित खांड मिसरी शहदसे पृथक् २ युक्त अथवा नहीं युक्तहुआ यह व्रतहै इसको चार तोले नित्यप्रति अभ्याससे पीताहुआ मनुष्य अपनी रुची भोजन पान चेष्टावाला होताहै ॥ ७२ ॥ और शोभावाला और दूरहुये पापोंवाला और वनके भैंसेके समान बलवाला और घोडेके समान वेगवाला और स्थिररूप अंगोंवाला और भौरके समान नीले केशों से युक्त मधुर और सुगंधित मुखावला और अनेक स्त्रियोंको सेवनेवाला वाणी बुद्धि धारणासे संपन्न श्रेष्ट जठराग्निवाला मनुष्य होजाताहै और एक महीना सेवनसे यह मनुष्य नृसिंह अग्निकी शिखाके समान तप्त और सुंदर कांतिवाले शरीरको धारण करताहै ॥ ७३ ।। और इस नारसिंह नामबाले घतको सेवनेवालेको व्याधि नहीं स्पर्शित करती, जैसे भयभीतहुये राक्षस चक्रसे उज्ज्वल भुजावाले नृसिंहजीको ।। ७४ ॥ भुंगप्रवालानमुनैवभृष्टान्घृतेन यः खादति यंत्रितात्मा ॥ विशुद्धकोष्ठोऽसनसारसिद्धदुग्धानुपस्तत्कृतभोजनार्थः ॥७५॥ मासोपयोगात्ससुखी जीवत्यब्दशतद्वयम् ॥ गृह्णाति सकृदप्युक्तमविलुप्तस्मृतींद्रियः ॥ ७६ ॥ इसीचूतसे भुनेहुये भंगराके अंकुरोंको यंत्रितात्मा मनुष्य खाताहै और शुद्धकोष्टवाला होके बीजसारमें सिद्ध किये दूधका अनुपान करता है और तिसी दूधका भोजन करताहै ॥ ७५ ॥ एक महीनेके उपयोगसे सुखी और २०० वर्पतक जीवताहै और एकवार कहेको ग्रहण करताहै और लुप्तपनेसे वर्जित स्मृति और इन्द्रियवाला होजाताहै ॥ ७६ ॥ अनेनैव च कल्पन यस्तैलमुपयोजयेत् ॥ तानेवाप्नोति सगुणाकृष्णकेशश्च जायते ॥७७॥ इसी कल्पसे जो तेलको उपयुक्तकरै वह तिन्हीं गुणोंको प्राप्त होताहै और काले बालोंवाला होजाताहै ॥ ७७ ॥ उक्तानि शक्यानि फलान्वितानि युगानुरूपाणि रसायनानि ॥ महानृशंसान्यपि चापराणि प्राप्त्यादिकष्टानि न कीर्तितानि ॥७॥ जो शक्यरूप और फलसे युक्त युगके अनुरूप रसायनहैं वे कहे और अशक्यरूप महाफलवाले अन्य रसायनहैं वे नहीं कहेहैं ॥ ७८ ॥ • रसायनविधिभ्रंशाज्जायेरन्व्याधयो यदि ॥ यथास्वमौषधं तेषां कार्यमुक्त्वा रसायनम् ॥ ७९ ॥ रसायनविधिके नाशसे जो कदाचित् रोग उपचैं तब रसायनको छोडके तिन्होंके यथायोग्य औषध करना योग्यहै ॥ ७९ ॥ सत्यवादिनमक्रोधमध्यात्मप्रवणेंद्रियम् ॥ शांतं सदृत्तनिरतं विद्यान्नित्यरसायनम् ॥ १८० ॥ For Private and Personal Use Only

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