Book Title: Ashtangat Rudaya
Author(s): Vagbhatta
Publisher: Khemraj Krishnadas

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Page 1107
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०४४) अष्टाङ्गहृदयेशहद कफको जीतताहै और घृत पित्तको जीतताहै, और तेल वायुको जीतताहै ॥१७॥ ऐसे प्रधान औषध कहा यह शांतिके अर्थ समर्थहैं, सो देशकाल वलसे यथायोग कल्पित करना योग्यहै ।।५८॥ • इत्यात्रेयादागमय्यार्थसूत्रं तत्सूक्तानां पेशलानामतृप्तः॥ भेडादीनां संमतो भक्तिनम्रः पप्रच्छेदं संशयानोऽग्निवेशः॥५९॥ ऐसे आत्रेयजीसे अर्थसूत्रको जानकर पीछे आत्रेयजीके कहेहुये प्रियवचनोंसे नहीं तृप्त हुए और भंडआदिकोंके संमत, और भक्तिसे नम्ररूप हुए संशयको प्राप्त अग्निवेश शिष्यने इस वक्ष्यमाणको पूछाथा ॥ ५९॥ दृश्यंते भगवन्केचिदात्मवंतोऽपि रोगिणः ॥ द्रव्योपस्थातृसंपन्नावृद्धवैद्यमतानुगाः॥६॥ क्षीयमाणामयप्राणा विपरीतास्तथापरे॥ हिताहितविभागस्य फलं तस्मादनिश्चितम् ॥ ६१॥ किंशास्तिशास्त्रमस्मिन्निति कल्पयतोऽग्निवेशमुख्यस्य ॥ शिष्यगणस्य पुनर्वसुराचख्यौकात्यंतस्तत्वम् ॥ ६२ ॥ हे भगवन् ! हित आहार और विहारवालेभी कितनेक रोगी होजातेहैं, और अच्छा औषध अच्छा सेवक इन्होंसे संपन्न और वृद्ध वैद्यके मतके अनुसार चलनेवाले ऐसेभी कितनेक रोगी होजातेहैं ॥ ६० ॥ अर्थात् रोगोंसे क्षीणहुये प्राणोंवाले होतेहैं, और इन पूर्वोक्त रीतिको त्यागनेवाले रोगी नहीं होते इसकारणसे हित और अहितका फल निश्चित नहींह ॥ ६१ ॥ यहां शास्त्र क्या शिक्षा देताहै, अग्निवेश प्रधान शिष्यके सहित शिष्यगणोंकी कल्पनाके होनेमें पुनर्वसु अर्थात् आ. त्रेयमुनि तिन शिष्योंके अर्थ संपूर्णतासे तत्वको कहतेभये ॥ ६२ ॥ न चिकित्साऽचिकित्सा च तुल्याभवितुमर्हति ॥ विनापिक्रिययाऽस्वास्थ्यं गच्छतां षोडशांशया ॥६३॥ चिचित्साके संग अचिकित्सा सोलहवें हिस्सेकेभी तुल्य नहीं होसकती क्योंकि क्रियाके विना मनुष्य अस्वस्थपनेको प्राप्त होताहै ।। ६३ ॥ आतंकपंकमन्नानां हस्तालंबो भिषग्जितम् ॥ जीवितं म्रियमाणानां सर्वेषामेव नौषधात् ॥६४ ॥ और रोगरूप कीचडमें डूबतेहुये मनुष्योंके औषधही हस्तालंब अर्थात् आसराहै और सब तरहसे म्रियमाणहुओंका जीवना औषधसे नहीं होसकता ।। ६४ ।। नयुपायमपेक्षते सर्वे रोगा न चान्यथा ॥ उपायसाध्याः सिध्यति नाहेतुहेतुमन्यतः॥६५॥ For Private and Personal Use Only

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