Book Title: Ashtangat Rudaya
Author(s): Vagbhatta
Publisher: Khemraj Krishnadas

View full book text
Previous | Next

Page 1055
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९९२) अष्टाङ्गहृदयेकाश्मर्यवंटशृङ्गाणि जीवकर्षभको सिता॥ मञ्जिष्ठा मधुकं चेति दष्टो मण्डलिना पिबेत् ॥६५॥ कंभारी बडके अंकुर जीवक ऋषभक मिसरी मजीठ मुलहटीको मंडलीसे दष्टहुआ मनुष्य पवि६५ वंशत्वग्बीजकटुकापाटलीबीजनागरम् ॥ शिरीषबीजातिविषे मूलं गावेधुकं वचा ॥६६ ॥ पिष्टो गोवारिणाष्टाङ्गो हन्ति गोनस विषम् ॥ बांसकी छाल और बीज कुटकी पाडिलके बीज सूंठ शिरसके बीज अतीस खरेहटीकी जड बच ॥ ६६ ।। इन्होंको गायके मूत्रसे पीसे, यह अष्टांग औषध मंडली सर्पके विषको हरताहै ।। कटुकातिविषाकुष्ठगृहधूमहरेणुकाः॥६७॥ सक्षौद्रव्योषतगरा नन्ति राजीमतां विषम् ॥ और कुटकी अतीश कूठ घरका धूम रेणुकबीज ॥ १७ ॥ शहद सूंठ मिरच पीपल तगर ये राजिल सपोंके विषको नाशतेहैं ॥ निखनेकाण्डचित्राया दंशं यामद्वयं भुवि ॥ ६८॥ उद्धृत्य प्रस्थितं सर्पिर्धान्यमृद्भयां प्रलेपयेत् ॥ पिबेत्पुराणं च घृतं वराचूर्णावचूर्णितम् ॥ ६९॥ जीर्णे विरिक्ते भुञ्जीत यवान्नं सूपसंस्कृतम् ॥ और कांडचित्रासंज्ञक सर्पके दंशको दो पहरतक पृथिवीमें गाडै ॥ ६८ ॥ पीछे निकास ६४ तोले घृत और अन्नकी मट्टीसे लेपितकर और त्रिफलेके चूर्णसे अवचूर्णित किया पुराना घृत पावै ॥ १९॥ जीर्णहुये पीछे विरिक्तहुआ मनुष्य दालसे संस्कृत किये जवोंके अन्नको खावै ॥ करवीरार्ककुसुममूललाङ्गलिकाकणाः॥ ७० ॥ कल्कयेदारनालेन पाठामरिचसंयुताः॥ एष व्यन्तरदष्टानामगदः सार्वकार्मिकः॥ ७१ ॥ और कनेरके फूल आककी जड कलहारी पीपल ॥ ७० ॥ पाठा मिरच इन्होंको कांजीमें पीसके कल्क बनावै यह कल्क व्यंतर सर्पसे दष्टहुये मनुष्योंको सब कामना देनेवाला औषधहै।।७१॥ शिरीषपुष्पस्वरसे सप्ताह मरिचं सितम्॥ भावितं सर्पदष्टानां पाने नस्याञ्जने हितम् ॥७२॥ शिरसके फूलोंके स्वरसमें सात दिनोंतक भावितकरी सफेद मिरच सर्पसे दष्टहयोंके पान नस्य अंजनमें हितहै ।। ७२ ॥ द्विपलं नतकुष्ठाभ्यां घृतक्षौद्रचतुष्पलम् ॥ अपि तक्षकदष्टानां पानमेतत्सुखप्रदम् ॥७३॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 1053 1054 1055 1056 1057 1058 1059 1060 1061 1062 1063 1064 1065 1066 1067 1068 1069 1070 1071 1072 1073 1074 1075 1076 1077 1078 1079 1080 1081 1082 1083 1084 1085 1086 1087 1088 1089 1090 1091 1092 1093 1094 1095 1096 1097 1098 1099 1100 1101 1102 1103 1104 1105 1106 1107 1108 1109 1110 1111 1112 1113 1114 1115 1116 1117