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(८७४)
अष्टाङ्गहृदयेमछली भैसा शूकरके मांस कच्चीमूली उडदकी दाल दही दुध कांजी ईखकी राव ॥ १ ॥ और नीची शय्याको सेवनेवालेके और दंतधावनको त्यागनेवालेके और धूवा वमन गंडूषको नहीं सेवनेवालेके और शिरावेधको नहीं करानेवालेके ॥ २ ॥ कुपितहुए कफकी अधिकतावाले दोष मुखके भीतर रोगको करतेहैं ।
तत्र खण्डौष्ठ इत्युक्तो वातेनोष्ठौ द्विधा कृतः॥३॥
ओष्ठकोपे तु पवनात्स्तब्धावोष्ठौ महारुजौ ॥
दाल्येते परिपाट्येते परुषासितकर्कशौ॥४॥ तहां वायुकरके दोप्रकारसे किया ओष्ठ खंडोष्ठ रोग कहाताहै ॥ ३ ॥ वायुसे ओष्ठके कोपमें स्तब्धरूप और अत्यन्त शूलवाले और दलितरूप फटेहुएकी समान कठोर काले और रूखे ओष्ठ दीखतेहैं ॥ ४ ॥
पित्तात्तीक्ष्णासही पीतौ सर्षपाकृतिभिश्चितौ ॥ पिटिकाभिर्महाक्लेदावाशुपाको कफात्पुनः॥५॥
शीतासहौ गुरू शूनौ सवर्णपिटिकाचितौ॥ पित्तसे तीक्ष्णपनेको नहीं सहनेवाले पीले और शरसोंके समान आकृतिवाली फुनसियोंसे व्याप्त अत्यन्त क्लेदसे संयुक्त और तत्काल पकनेवाले ओष्ठ होजातेहैं और कफकरके ॥ ५ ॥ शीतको नहीं सहनेवाले और भारी और शोजासे संयुक्त समान वर्णवाली फुनसियोंसे व्याप्त ओष्ठ होजातेहैं ।।
सन्निपातादनेकाभौ दुर्गन्धास्त्रावपिच्छिलौ ॥६॥
अकस्मान्म्लानसंशूनरुजौ विषमपाकिनौ ॥ और सन्निपातसे अनेक प्रकारकी कांतिवाले और दुर्गन्धित स्त्राव तथा पिच्छासे संयुक्त ॥ ६ ॥ और कारणके विनाही म्लान और शोजासे संयुक्त और शूलसे संयुक्त और मिषमपाकवाले ओष्ठ होजातेहैं |
रक्तोपसृष्टौ रुधिरं स्रवतः शोणितप्रभौ ॥७॥
खर्जूरसदृशं चात्र क्षीणे रक्तेऽर्बुदं भवेत् ॥ रक्तदोषसे रक्तको झिराते हुए और रक्तके समान कांतिबाले ओष्ट होजातेहैं ॥ ७ ॥ क्षीणहुए रक्तमें खजूरियाके सदृश गांठ ओष्ठपै होजातीहै ।।
__ मांसपिण्डोपमौ मांसात्स्यातां मूर्च्छत्कृमी क्रमात् ॥ ८॥
और मांसके दोषसे मांसके पिंडके समान उपमावाले और कीडोंको उपजानेवाले ओष्ठ क्रमसे होजाते हैं ।। ८॥
तैलाभश्वयथुक्लेदौ सकण्ड्डौ मेदसा मृदु ॥ और मेदकरके तेलके समान शोजा और तेलसे संयुक्त और खाजसे सहित तथा कोमल ओष्ठ होजातेहैं ।।
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