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उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (८७५) क्षतजाववदीयेते पाटयेते चासकृत्पुनः ॥९॥
ग्रथितौ च पुनः स्यातां कण्डूलौ दशनच्छदौ ॥ और क्षतसे अवदारितहुए तथा बारंबार पाटितहुए ॥ ९ ॥ और बारंबार प्रथित हुए और खाजसे संयुक्त ओष्ठ होजातेहैं ॥
। जलबुद्बुदवद्वातकफादोष्ठे जलार्बुदम् ॥१०॥ और वात कफसे ओष्ठमें पानी के बुलबुलाकी समान गांठ होजातीहै ।। १० ।।
गण्डालजी स्थिरः शोफो गण्डे दाहज्वरान्वितः ॥ के.पोलपै दाह और ज्वरसे युक्त स्थिर शोजा उपजताहै वह गंडालजी कहाताहै ॥
वातादुष्णसहा दन्ताः शीतस्पर्शाधिकव्यथाः ॥११॥
दाल्यन्त इव शूलेन शीताख्यो दानलश्च सः॥ और वायुकरके गरमाईको सहनेवाले और शीतल स्पर्शमें अधिकपीडावाले ॥ ११ ॥ और शूलसे संचलितकी समान दंत होजातेहैं यह शीताख्य अथवा दानल नाम रोग कहाताहै ।।
दन्तहर्षे प्रवाताम्लशीतभक्ष्याक्षमा द्विजाः ॥१२॥
भवन्त्यम्लाशनेनैव सरुजाश्चलिता इव ॥ और दंतहर्षरोगमें वायु खटाई शीतल पदार्थको नहीं सहनेवाले ॥ १२ ॥ और खट्टे भोजनकी पीडासे संयुक्त और चलितकी समान दांत होजातेहैं ॥
दन्तभेदे द्विजास्तोदभेदरूक्स्फुटनान्विताः ॥ १३॥ और दंतके रोगमें चभका भेद शूल स्फुटनसे युक्त दंत होजातेहैं ॥ १३ ॥
चालश्चलद्भिर्दशनैर्भक्षणादधिकव्यथैः ॥ चलायमान और भक्षण करनेसे अधिक पीडावाले दांत होजावें तब चाल रोग जानना ॥
करालः सुकरालानां दशनानां समुद्भवः ॥१४॥ और जब अच्छीतरह दांतोंमें करालपना उपज आवै तब करालरोग जानना ॥ १४ ।।
दन्ताधिकोऽधिदन्ताख्यः स चोक्तः खलु वर्द्धनः ।।
जायते जायमानेऽतिरुक् जाते तंत्र शाम्यति ॥१५॥ __ अधिक उपजा दांत अधिदंतरोग जानना तथा यही वर्धनरोग जानना और उपजतेहुए इसमें अत्यंत पीडा होतीहै और उपजे पीछे पीडा शांत होजातीहै ॥ १५ ॥
अधावनान्मलो दन्ते कफो वा वातशोषितः॥
पूतिगन्धः स्थिरीभूतः शर्करा सोऽप्युपेक्षितः॥ १६ ॥ दतोनादि न करनेसे दांतमें मल अथवा कफ वातसे शोषितहोके प्रतिगंधरोग कहाताहै और स्थिरीभूत हुआ और नहीं चिकित्सितकिया वह शर्करारोग होजाताहै ॥ १६ ॥
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