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(८७६)
अष्टाङ्गहृदयेशातयत्यणुशो दन्ताकपालानि कपालिका ॥ कपालिकाख्यरोग दांतोंको और कपालको सूक्ष्मपनेसे काटताहै ॥
श्यावः श्यावत्वमायाता रक्तपित्तानिलर्द्विजाः ॥१७॥ रक्त पित्त और वायुसे धूम्रपनको प्राप्तहुए दंत पावरोग कहाताहै ॥ १७ ॥
समूलं दन्तमाश्रित्य दोषैरुल्बणमारुतैः ॥ शोषिते मज्ज्ञि शुषिरे दन्तेऽन्नमलपूरिते ॥ १८॥ पूतित्वात्कृमयः सूक्ष्मा जायन्ते जायते ततः॥ अहेतुतीबार्तिशमः ससंरम्भोऽसितश्चलः ॥१९॥
प्रभूतपूयरक्तस्तु स चोक्तः कृमिदन्तकः॥ बातकी अधिकतावाले दोष मूल सहित दंतोंमें आश्रितहोके दंतोंकी चिकनाईको शोषितकर पीछे अन्न और मलसे पूरितहुए दतके छिद्रमें ॥ १८ ॥ दुर्गधपनेसे सूक्ष्म कीडे उपजातेहैं,पीछे कारणसे वर्जित तीव्र पीडा और शांति उसजतीहै, और संरंभसे युक्त कृष्णरूप चलायमान ॥ १९ ॥ और अत्यंत राद और रक्तको झिरानेवाला कृमिदंतकरोग कहा ॥
श्लेष्मरक्तेन पूतीनि वहन्त्यस्त्रमहेतुकम् ॥२०॥ शीर्य्यन्ते दन्तमांसानि मृदुक्लिन्नासितानि च ॥ शीतादोऽसौ कफ और रक्तसे दुर्गंधितहुए और निमित्तसे वर्जित रक्तको बहतेहुए ॥ २० ॥ कोमल क्लिन्नरूप और काले दतोंके मांस बिखरजाते हैं यह शीतादरोग कहाताहै ॥
उपकुशः पाकः पित्तासृगुद्भवः ॥२१॥ दन्तमांसानि दह्यन्ते रक्तान्युत्सेदवन्त्यतः॥ कण्डूमन्ति स्त्रवन्त्यसमाध्मायन्तेऽसृजि स्थिते ॥२२॥
चला मन्दरुजो दन्ताः पूतिवत्रं च जायते ॥ पित्त और रक्तसे उपजा जो दंतोंके मांसोंका पाकहै यह उपकुशरोग कहाताहै ॥ २१ ॥ तिस करके दंतोंका मांस दग्ध होताहै, और रक्तवर्णवाले और ऊंचपनेसे संयुक्त और खाजसे संयुक्त वे दंतोंके मांस रक्तको झिरातेहैं और स्थितहुए रक्तमें वे दंतोंके मांस अफारेको प्राप्त होतेहैं ॥ २२ ॥ चलायमान और मंद पीडासे संयुक्त दांत होजातेहैं और मुख दुर्गधित होजाताहै ॥
दन्तयोस्त्रिषु वा शोफो बदरास्थिनिभो घनः ॥ २३॥
कफास्त्रात्तीवरुक्छीघ्र पच्यते दन्तपुप्पुटः ।। और दो दांतोंमें तथा तीन दांतोंमें बेरीकी गुठलीके समान और करडा शोज उपजै ॥ २३ ॥ कफ और रक्तसे तीव्र शूल और शीघ्र पकजावे यह दंतपुप्पुटरोग कहाताहै ॥
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