________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् ।
( ८६९ )
पचेन्नासापुटे पित्तं त्वङ्मांसं दाहशूलवत् ॥१८॥ स घ्राणपाकः और पित्त नासिका के पुटमें दाह और शूलसे संयुक्त त्वचा और मांसको पकाता है ॥ १८ वह प्राणपाकरोग कहाता है ||
स्रावस्तु तत्संज्ञः श्लेष्मसम्भवः ॥
अच्छोजलोपमोऽजस्त्रं विशेषान्निशि जायते ॥ १९ ॥
और प्राणस्त्राव रोग कफसे उपजता है और अतिशय करके पतला और जलके समान उपमावाला विशेषकरके रात्रिमें उपजता है ॥ १९ ॥
कफः प्रवृद्धो नासायां रुद्धा स्रोतांस्य पीनसम् ॥ कुर्य्यात्स घुघुरं श्वासं पीनसाधिकवेदनम् ॥ २० ॥ अवेरिव स्रवत्यस्य प्रक्लिन्ना तेन नासिका ॥ अजस्रं पिच्छिलं पीतं पक्कं सिंघाणकं घनम् ॥ ॥ २१ ॥ रक्तेन नासादग्धेन वाह्यान्तः स्पर्शनासहा ॥ भवेद्रमोपमोच्छ्रासा सा दीप्तिर्दहतीव च ॥ २२ ॥
नासिकामें बढाहुआ कफ स्रोतोंको रोककर अपीनसरोगको करता है यह रोग बुर्बुरश्वास पीनससे अधिक पीडाको करता है ||२०|| इस रोगी की प्रक्लिन्नहुई नासिका मेंढाकी तरह झिरती रहती है, और पिच्छिल तथा पीत और पत्र और करडा मैल नासिका के द्वारा गिरता है ॥ २१ ॥ नासिकामें दग्धहुए रक्त करके भीतर और बाहिरसे नासिका स्पर्शको नहीं सहती है और धूवांके समान उपमावाले भीतरके श्वाससे संयुक्त और दग्ध करनेकी समान नासिका हो जाती है यह दीप्तिरोग कहता है ॥ २२ ॥
तालुमूले मलैर्दुष्टैर्मारुतो मुखनासिकात् ॥ श्लेष्मा च पूतिर्निगच्छेत्पूतिनासं वदन्ति तम् ॥ २३॥
तालुके मूलमें दुष्टहुए दोषोंकरके मुख और नासिका के द्वारा दुर्गंधित वायु और कफ निकलता है तिसको पूतिनासकहते हैं ॥ २३ ॥
निचयादभिघाताद्वा पूयासृनासिका स्रवेत् ॥ तत्पूयरक्तमाख्यातं शिरोदाहरु जाकरम् ॥ २४ ॥
सन्निपातसे अथवा चोटके लगनेसे राद और रक्तको नासिका झिराती है वह पूयरक्तरोग कहा - ताहै, यह शिरमें दाह और शूलको करता है || २४ ॥
पित्तश्लेष्मावरुद्धोऽन्तर्नासायां शोषयेन्मरुत् ॥
कफं सशुष्कपुटता प्राप्नोति पुटकन्तु तत् ॥ २५ ॥
पित्त और कफ करके रुका हुआ वायु नासिका के भीतर कफको शोषता है पीछे वह कफ शुष्कपुटताको प्राप्त होता है वह पुटकरोग कहाता है || २५ ॥
For Private and Personal Use Only