________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् ।
प्रियंगु मधुकाम्बष्ठाधातक्युत्पलपर्णिभिः ॥ २० ॥ मञ्चिष्ठालोधलाक्षाभिः कपित्थस्य रसेन च ॥ पचेत्तैलं तदास्रावं निगृह्णात्याशु पूरणात् ॥ २१ ॥
और मालकांगनी मुलहटी पाठा धायके फूल पृश्निपर्णी शालपर्णी ॥ २० ॥ मजीठ लोध लाख इन्होंके कल्कसे और कैथके रससे तेलको पकावे यह तेल पूरण करनेसे तत्काल स्रावको हरता है ॥ २१ ॥
( ८६१ )
नादबाधिर्य्ययोः कुर्य्याद्वातशूलोत्तमैौषधम् ॥ श्लेष्मानुबन्धे श्लेष्माणं प्राग्जयेद्वमनादिभिः ॥ २२ ॥ कर्णनाद और बधिरपने में वातशूलमें कहे औषधको करे और कफ के अनुबंध में पहले वमन आदि से कफको जीतै ॥ २२
एरण्डशिश्र्वरुणमुलकात्पत्रजे रसे ॥ चतुर्गुणे पचेत्तैलं क्षीरेचाष्टगुणोन्मिते ॥ २३ ॥ यष्ट्याह्नाक्षीरकाकोलीकल्कयुक्तं निहन्ति तत् ॥ नादबाधिर्य्यशूलानि नावनाभ्यङ्गपूरणैः ॥ २४ ॥
अरंड सहोंजना वरणामूलीके चौगुने रसमें और आठगुने दूधमें तेलको पकावै और मु क्षीरकाकोली इन्होंके कल्क करके संयुक्तकर सिद्धकिया पूर्वोक्त तेल नस्य मालिश पूरण इन्हों करके कर्णनाद शूल बधिरपनेको नाशता है ॥ २३ ॥ २४ ॥
पक्कं
प्रतिविषाहिङ्गमिशित्वक्स्वर्जिकोषणैः
For Private and Personal Use Only
॥
ससुक्तैः पूरणात्तैलं रुक्स्रावश्रुतिनादनुत् ॥ २५ ॥
काला अतीश हींग सोंफ दालचीनी साजी मिरच कांजी में पकायाहुआ तेल शूल स्राव कान में शब्दको नाशता है ॥ २५॥
कर्णनादे हितं तैलं सर्पपोत्थञ्च पूरणे ॥
पूरणेमें शरसोंका तेल कर्णनादमें हितहै ॥ शुष्कमूलकखण्डाना क्षारो हिङ्गु महौषधम् ॥ २६ ॥ शतपुष्पावचाकुष्ठदारुशिग्रुरसांजनम् ॥ सौवर्चलयवक्षारस्वर्जिकोद्भिदसैन्धवम् ॥ २७ ॥ भूर्जग्रन्थिविडं मुस्तामधुसुक्तं चतुर्गुणम् ॥ मातुलुङ्गरसस्तद्वत्कदलीस्वरसश्च तैः ॥ २८ ॥ पक्कं तैलं जयत्याशु सुकृच्छ्रानपि पूरणात् ॥ कण्डूं क्लेदञ्च बाधिर्यं पूतिकर्णञ्च रुक्मीन् ॥ २९ ॥ क्षारतैलमिदं श्रेष्ठं मुखदन्तामयेषु च ॥ और सूखीमूलीके अथवा सहोंजना के टुकडोंका खार हींग सूंठ ॥ २६ ॥ शौफ बच कूठ देवदारसहजना रशोत कालानमक जवाखार साजी रेहींनमक सेंधानमक ||२७|| भोजपत्र पीपलामूल मनि