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कल्पस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (७४९ कल्पयेत्सदृशान्भागान्प्रमाणं यत्र नोदितम् ॥
कल्कीकुर्य्याच्च भैषज्यमनिरूपितकल्पनम् ॥ २४ ॥ जहां द्रव्योंका परिमाण नहीं कहा हो तहां समानभागको कल्पितकरै और नहीं निरूपित कल्पनावाले औषधको कल्क बनाके प्रयुक्तकरै ।। २४ ॥
द्वौ शाणौ वटकः कोलं बदरं द्रंक्षणश्च तौ॥अक्षं पिचुःपाणि तलं सुवर्ण कवलग्रहः॥२५॥ कर्षो बिडालपदकं तिन्दुकः पा णिमानिका ॥ शब्दान्यत्वमभिन्नेऽर्थे शुक्तिरष्टमिका पिचू ॥ ॥ २६ ॥ पलं प्रकुञ्चो विल्वं च मुष्टिरानं चतुर्थिका ॥ द्वे पले प्रसृतस्तौ द्वावञ्जलिस्तो तु मानिका ॥ २७ ॥ आढकं भाजनं कंसो द्रोणः कुम्भो घटोर्मणम्॥तुलापलशतं तानि विंशति
और उच्यते ॥२८॥ दो शाणोंका वटक होताहै, और कोल बदर द्रंक्षण ये तीनों वटकके पर्याय शब्दहैं, और दो बटकांकरके एक अक्ष होताहै, और पिचु पाणितल सुवर्ण कवलग्रह॥२५॥कर्ष बिडालपदक तिंदुक पाणिमानिका ये सब अक्षके पर्याय शब्द हैं, और दो पिचुओंका एक शक्ति होताहै और इसका अष्टमिका पर्याय शब्दहै ।। २६ ॥ और दो शुक्तियोंका पल होताहै और प्रकुंच बिल्व मुष्टि आम्र चतुर्थिका ये सब पलके पर्याय शब्द हैं और दो पलोंका प्रसृत होता है और दो प्रसृतों का अंजलि होताहै और दोअंजलियोंकी मानिका होतीहै ॥ २७ ॥ और आढक भाजन कंस ये आपसमें पर्याय शब्दहैं और द्रोण कुंभ घट अर्मण ये आपसमें पर्याय शब्दहैं और १०० पलोंकी तुला होती है और २० तुलाओंका भार होताहै ॥ २८ ॥
हिमवद्विन्ध्यशैलाभ्यां प्रायो व्याप्ता वसुन्धरा ॥
सौम्यं पथ्यं च तत्राद्यमाग्नेयं वैन्ध्यमौषधम् ॥२९॥ हिमवान् और विंध्याचल इन दोनों पर्वतोंकरके विशेषतासे पृथिवी व्याप्तहोरही है तिन दोनों मेंसे हिमवान् पर्वतमें उपजी औषध सौम्य और पथ्यहैं और विंध्याचलमें उपजी औषध आग्ने यह अर्थात् देहको पथ्य नहीं ॥ २९॥ इति वेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकायां
कल्पस्थाने षष्ठोऽध्यायः ॥ ६ ॥ यहाँ सिंहगुप्तका पुत्र वाग्भटविरचित अष्टांगहृदयसहितामें कल्पस्थान समाप्तहुआ ।
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