________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(७५८)
अष्टाङ्गहृदये
वातसे दुष्टहुये दूधमें तीन दिनों तक दशमूलको पीवै ॥ ९॥अथवा चीता वच पाठा कुटकी कूठ अजमोद भारंगी देवदादर सरलवृक्ष मेंढासींगी पीपल मिरच इन्होंके काथको तीन दिनोंतक पीवै १० ततः पिवेदन्यतमं वातव्याधिहरं घृतम् ॥
अनु चाच्छसुरामेवं स्निग्धं मृदु विरेचयेत् ॥ ११ ॥ वस्तिकर्म्म ततः कुर्य्यात्स्वेदादींश्चानिलापहान् ॥
पीछे वातव्याधिचिकित्सितमें कहे वृतको अथवा स्वच्छ मदिराको पीवै पीछे स्निग्धहुये को कोमल जुलाब देवै ॥ ११ ॥ पीछे बस्तिकर्म और वातको नाशनेवाले स्वेद आदि कर्मों को करे || रास्त्राजमोदासरलदेवदारुरजोऽन्वितम् ॥ १२ ॥
बालो लिह्या घृतं तैर्वा विपक्कं ससितोपलम् ॥
और रायशण अजमोद सरलवृक्ष देवदार इन्होंके चूर्णसे अन्वितकिये ॥ १२ ॥ घृतको बालक चाटे अथवा इन्हीं औषधोंके कल्क में सिद्धकिया और मिसरीसे संयुक्त ऐसे घृतको चाटै ॥
पित्तदुष्टेऽमृताभीरुपटोलीनिम्बचन्दनम् ॥ १३ ॥ धात्र्यैः कुमारश्च पिबेत्क्काथयित्वा ससारिवम् ॥ अथ वा त्रिफलामुस्तं भूनिम्बकटुरोहिणीः॥१४॥ सारिवाार्दं पटोलादिं पद्मकादिं तथा गणम् ॥ घृतान्यभिश्च सिद्धानि पित्तघ्नं च विरेचनम् ॥ १५ ॥
और पित्तसे दुष्टहुये दूधमें गिलोय शतावरी परवल नींव चंदन ॥ १३ ॥ इन्होंके सारिवा तसे संयुक्त किये क्वाथको अथवा त्रिफला नागरमोथा चिरायता कुटकी इन्होंके काथको धाय अथवा बालक पीवै ॥ १४ ॥ और सारिवादिगण पटोलादिगण पद्मकादिगण इन्होंके औषधोंके काथोंको पीवै अथवा इन्हीं गणोंके औषधोंमें सिद्ध किये घृतोंको तथा पित्तनाशनेवाले विरेचन द्रव्यको पीवै १९ शीतांश्चाभ्यंगलेपादीन्युञ्ज्यात् श्लेष्मात्मके पुनः ॥ यष्ट्याह्नसैन्धयुतं कुमारं पाययेद्धृतम्॥१६॥सिन्धूत्थपिप्पलीमद्वापिष्टैः क्षौद्रयुतैरथ ॥ राठपुष्पैः स्तनौ लिम्पेच्छिशोश्च दशनच्छदौ ॥१७॥ सुखमेवं वमेद्दालस्तीक्ष्णैर्धात्रीं तु वामयेत् ॥ अथाचरित संसर्गी मुस्तादिं कार्थतं पिवेत् ॥ १८ ॥ तद्वत्तगरपृथ्वीका सुरदारुकलिङ्गकान् ॥ अथ वातिविषामुस्तषड्ग्रन्थापंचकोलकम् ॥ १९ ॥ और शीतलरूप लेप और मालिशआदिको प्रयुक्तकरे और कफसे दुष्टहुये दूधमें मुलहटी सेंधानमकसे संयुक्त किये वृतको बालकके अर्थ पान करावै ॥ १६ ॥ अथवा सेंधानमक और
For Private and Personal Use Only