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शारीरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (३४७ ) स्वस्थ मनुष्य जीवनेके संदेहको प्राप्त होके कोईक पुण्यवान्ही मरनेसे बचता है ॥
दृष्टः श्रुतोऽनुभूतश्चप्रार्थितः कल्पितस्तथा ॥६०॥ भाविको दोषजश्चेति स्वप्नः सप्तविधो मतः॥ तेष्वाद्या निष्फलाः पञ्च यथास्वं प्रकृतिर्दिवा ॥६१॥ विस्मृतो दीर्घह्रस्वोऽति पूर्वरात्रे चिरात्फलम् ॥ १२ ॥ दृष्टः करोति तुच्छं च गोसर्गे तदहम हत् ॥ ६३ ॥ निद्रया चानुपहतः प्रतीपैर्वचनैस्तथा ॥
और दृष्ट, श्रुत, अनुभूत, प्रार्थित कल्पित ॥ ॥ ६॥ भाविक, दोपज ऐसे स्वप्न ७ प्राकारके हैं परंतु जो जाग्रत अवस्थामें नेत्रकरके देखा है वही स्वप्नमें दीखै तिसको दृष्टस्वप्न कहते है और जो जागते हुयेने कानोंकरके सुना है वही स्वप्नमें दीखै तो तिसको श्रुतस्वप्न कहते हैं और जो जाग्रत् अवस्थामें इंद्रियोंकरके अनुभवको प्राप्त होता है वही स्वप्नमें अनुभावित होवे तिसको अनुभूत स्वप्न कहते हैं और जिसके देखने सुनने अनुभव करनमें जो पहिले जाग्रत् अवस्थामें उत्पन्नहुआ वस्तु मनकरके चितवन किया गया है वही स्वप्नअवस्थामें अंतःकरणमें अनुभावित होता है तिसको प्रार्थितस्वप्न कहते हैं और जो न देखा है न सुना है न अनुभावित किया है न प्रार्थित किया है परंतु केवल मनकरके इच्छाके अनुसार कल्पनाओंकरके जाग्रत अवस्थामें कल्पित किया गया वही स्वप्नावस्थामें दीखता है तिसको कल्पितस्वप्न कहते है और जो दृष्टश्रुत आदि स्वप्नोंसे विलक्षणरूप नवीन स्वप्ना स्वप्नावस्थामें दीखता है तिसको भाविकस्वप्न कहते हैं और जो वात पित्त कफ इन्होंके अनुसार यथायोग्य स्वप्ना आता है तिसको दोषजस्वप्न कहते हैं तिन सातों स्वप्नोंमें दृष्ट, श्रुत, अनुभूत, प्रार्थित, कल्पित, दोषज और दिनमें आया हुआ॥ ६१ ॥
और भुलाहुआ और अत्यंतलंबा और अत्यंत छोटा ये सब स्वप्ने निष्फल कहे हैं और रात्रिके पहिले भागमें दृष्टसंज्ञक स्वप्न चिरकालकरके अल्पफलको करता है ॥ ६२ ।। और प्रभातमें देखा हुआ स्वप्न तिसी दिनमें अत्यंत फलको करता है ॥ ६॥परंतु निद्राकरके और अनुकूलतासे रहित वचनोंकरके नहीं उपहत हुआ ॥
याति पापोऽल्पफलतां दानहोमजपादिभिः ॥६४ ॥ स्वप्ना अत्यंत फलको करता है और दान, होम, जप इन आदिकरके बुरा स्वप्ना अपफलको देता है ॥ ६४ ॥
अकल्याणमपि स्वप्नं दृष्ट्वा तत्रैव यः पुनः॥ पश्येत्सौम्यं शुभं तस्य शुभमेव फलं भवेत् ॥ ६५ ॥ देवान्द्विजान्गोवृषभाजीवतः सुहृदो नृपान्॥ साधन्यशस्विनो वह्निमिद्धं स्वच्छा
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