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श्रीः। अष्टाङ्गहदयसहितायां चिकित्सास्थानम्।
-voseoप्रथमोऽध्यायः।
रोगपरीक्षा निदान स्थानमें कही है अब क्रमसे प्राप्त हुई चिकित्साको कहते हैं ।
अथातो ज्वरचिकित्सितं व्याख्यास्यामः॥
इति ह स्माहुरात्रेयादयो महर्षयः॥ अब हम ज्वरचिकित्सितनाम अध्यायका व्यख्यान करेंगे । अत्रिआदि महर्षियोंन यह कहा है । आमाशयस्थो हत्वाग्निं सामो मार्गान्पिधाय यत् ॥ विदधाति ज्वरं दोषस्तस्मात्कुर्वीत लङ्घनम् ॥१॥प्रापेषु ज्वरादौ वा बलं यत्नेन पालयन् ॥ दोष आमाशयमें स्थितहोके आमसे युक्त हुआ स्त्रोतोंके मार्गोको रोकता हुआ जठराग्निको हनन करके ज्वरको उपजाताहै, इसवास्ते लंघन करना चाहिये ॥ १॥ और ज्वरके प्रारूपोंमें और म्वरकी आदिमें बलकी पालना करै, क्योंकि आरोग्य बलके आश्रय है अर्थात् बलभी बना रहै और ज्वरकी आदिमें लंघन करनेसे शीघ्र पच जाता है।
बलाधिष्ठानमारोग्यमारोग्यार्थः क्रियाक्रमः॥२॥ और आरोग्यके वास्ते क्रियाक्रम अर्थात् स्वास्थ्यका प्रयोजन है ॥ २ ॥
लंघनैः क्षपिते दोषे दीप्तेऽग्नौ लाघवे सति ॥
स्वास्थ्यं क्षुतुडू रुचिः पक्तिबलमोजश्च जायते ॥३॥ और लंघन करके दोष शान्त हो जावे, अग्निदप्ति हो जाय हलकापन होजाय तब पहलेकी तरह स्वास्थ्य, क्षुधा, तृषा, रुचि, आमका पकना, बल धातुओंके तेज, उत्पन्न होते हैं ॥ ३ ॥
तत्रोत्कृष्टे समुक्लिष्टे कफप्राये चले मले ॥ सहृल्लासप्रसेकानद्वेषकासविषूचिके ॥ ४॥ सद्यो भुक्तस्य संजाते ज्वरे सामे विशेषतः ॥ वमनं वमनाहस्य शस्तं कुर्य्यात्तदन्यथा ॥५॥ श्वासातीसारसम्मोहहृद्रोगविषमज्वरान् ॥
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