________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ५८८ )
अष्टाङ्गहृदये
|| २ || आमसहित ग्रहणीदोषमें अतीससे संयुक्त और कुछेक अम्लरूप सूंठसे संयुक्त पेयाको देवै और पीने में अतिसार में कहे पानी तक्र मदिरा आदि पदार्थों को देवै ॥ ३॥
ग्रहणीदोषिणां तकं दीपनग्राहिलाघवात् ॥ पथ्यं मधुरपाकत्वान्न च पित्तप्रदूषणम् ॥ ४ ॥ कपायोष्णविकाशित्वाद्र्क्षत्वा च कफेहितम् ॥ वाते स्वाद्वम्लसान्द्रत्वात्सयस्कमविदाहितत् ॥ ५ ॥
ग्रहणदोषवालों को दीपन ग्राही लावत्रतासे तक पथ्य है, और मधुरपाकवाला होनेसे पित्तको दूषित नहीं करता है || ४ || और कषाय उष्ण विकारपनेसे और रूखेपनेसे तक हित है, और चातमें स्वादु अम्ल सांद्रपने से तत्कालका बनाया तक्र दाहको नहीं करता है और पथ्य है ॥ १ ॥ चतुर्णां प्रस्थमम्लानां त्र्यूषणाच्च पलत्रयम् ॥ लवणानां च चत्वारि शर्करायाः पलाष्टकम् ॥ ६ ॥ तच्चूर्णं शाकसूपान्नरागा दिष्ववचारयेत्॥ कासाजीर्णारुचिश्वासहृत्पार्श्वामयशूलनुत् ॥७॥ बेर अनार बिजोरा चूका इन्होंका चूर्ण ६४ तोले, सूंठ मिरच पीपलका चूर्ण १२ तोले, सब नमक १६ तोले, खांड ३२ तोले || ६ || यह चूर्ण शाक दाल अन्न राग आदिमें अवचारित किया खांसी अजीर्ण अरुची श्वास हृद्रोग परालीशूलको नाशता है || ७ ॥
नागरातिविषामुस्तं पाक्यमामहरं पिवेत् ॥ उष्णाम्बुना वा तत्कल्कं नागरं वाथ वाभयाम् ॥ ८ ॥ ससैन्धवं वचादिं वा तद्वन्मदिरयाऽथ वा ॥
सूंठ अतीश नागरमोथा इन्होंका काथ पीनेसे आमको हरता है, अथवा इन्होंके कल्कको गरम पानीके संग पीवै अथवा सुंठको गरमपानीके संग पीवै अथवा हरडोंको गरम पानी के संग पी ॥ ८ ॥ अथवा वच आदिगणको सेंधानमक से संयुक्त कर गरम पानी के संग अथवा मदिरा के संग पाबै ॥
वर्चस्यामे सप्रवाहे पिवेद्वा दाडिमाम्बुना ॥ ९ ॥ बिडेन लवणं पिष्टं विल्वचित्रकनागरम् ॥ सामं कफानिले कोष्ठारुष्करे कोष्ण वारिणा ॥ १० ॥
और कच्चे तथा प्रवाहसे संयुक्त विष्ठाके होजाने में अनारके पानी के संग ॥ ९ ॥ मनियारीनमक, वेळागरी, चीता सूंठ इन्होंके पानी को पी और आमसहित कफवात में कूठ और को अल्प गरन किय पानी के संग पीवै ॥ १० ॥
For Private and Personal Use Only