________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् ।
( ६२९ )
शालिर्गव्याज पयसा पटोलीजाङ्गलं घृतम्। धात्री परूषकं द्राक्षा खर्जूरं दाडिमं सिताम् ॥७४ || भोज्यं पानेऽम्बुवलया वृहत्या धैश्च साधितम् ॥
गायके और बकरीके दूधके संग शालिचावल और परवल और जांगलदेशका मांस घृत आयँला फाल्सा दाख खजूर अनार मिसरी ये भोजन करना हित है ॥ ७४ ॥ खरेहटी करके अथवा बृहत्यादिगणके औषध करके साधित किया पानी पीना हित है |
श्लेष्मजे वामयेत्पूर्वमवम्यमुपवासयेत् ॥ ७५ ॥ तिक्तोष्णकटु संसर्ग्या वह्निं सन्धुक्षयेत्ततः॥ हिंग्वादिभिश्च द्विगुणक्षारहिंग्वम्लवेतसैः ॥ः ॥ ७६ ॥
और कफ के गुल्म में रोगीको प्रथम वमन करावे और वमनके योग्य नहीं हो तिसको लंघन . करावै ॥ ७५ ॥ पश्चात् तिक्त उष्ण कटु इन्होंकरके संयुक्त हुई पेया आदि करके और दुगुने जवाखार हींग अम्लवेतस हींग आदिकरके अग्निको जगावै ॥ ७६ ॥
निगूढं यदि वोन्नद्धं स्तिमितं कठिनं स्थिरम् ॥ आनाहादियुतं गुल्मं संशोध्य विनयेनु ॥ ७७ घृतं सक्षारकटुकं पातव्यं कफगुल्मिना ॥
जो कदाचित् निगूढ अथवा ऊंचा अथवा स्तिमित और कठोर और स्थिर और अफारा आदिसें संयुक्त गुल्म होवै तो पहिले शोधन करके पीछे शांत करें || ७७|| कफके गुल्मवालेको खार और कटुक द्रव्योंकरके संयुक्त किया घृत पीना योग्य है
सव्योषक्षारलवणं सहिंगुबिडदाडिमम् ॥ ७८ ॥ कफगुल्मं जयत्याशु दशमूलशृतं घृतम् ॥
और सूंठ मिरच पीपल जवाखार नमक हींग मनियारनिमक अनारदाना इन्होंकरके ॥ ७८ ॥ और दशमूलकरके पकाया घृत कफके गुल्मको तत्काल जीतता है ॥
भल्लातकानां द्विपलं पञ्चमूलं पलोन्मितम् ॥७९॥ अल्पं तोयाढके साध्यं पादशेषेण तेन च ॥ तुल्यघृतं तुल्यपयो विपचेदक्ष सम्मितैः ॥ ८० ॥ विडंगहिंङ्गुसिन्धूत्थयात्रशूकशठीविडैः ॥ सद्वीपिरास्नायष्ट्याह्वषड्ग्रन्थाकणनागरैः ॥ ८१ ॥ एतद्भल्लातकघृतं कफगुल्महरं परम्॥प्लीहपांड्डामय श्वासग्रहणीरोगकास नुत् ॥ ८२ ॥ ततोऽस्य गुल्मे देहे च समस्ते स्वेदमाचरेत् ॥
For Private and Personal Use Only