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कल्पस्थानं भाषाटीकासमेतम् ।
शालीन्क्षीरेण वाऽद्यात्परिषिक्तगात्रः॥१५॥दाहातिसारप्रदरात्रपित्तहृत्पांडुरोगान्विषमज्वरं च ॥ सगुल्ममूत्र ग्रहकामलादी - न्सर्वामयान्पित्तकृत्यन्निहन्ति ॥ १६ ॥
रायण वांसा मजीठ धमासा खरैहटी लघुपंचमूल तृणपंचमूल काली सारिवा चंदन पद्माख ऋद्धि मुलहटी लोध ये सब दो दो तोले लेवै ॥१२॥ इन्हों को पानी में कथितकर पीछे तिस काथके संग १२८ तोले पानी करके हीन किये दूधको पकाके पीछे जीवन्ती मेदा ऋद्धि शतावरी विदारीकन्द शिवलिंगी काकोली क्षीरकाकोली कसेरू ॥ १३ ॥ मिसरी जीवक कमल रेणुका पौंडा नीला कमल पुंडरीकवृक्ष अगरकोंच मुलहटी नागकेशर मूंज तृण चंदन ॥ १४ ॥ ये सब पिसेहुये घृत और शहद से संयुक्त किये इन्होंकरके सैंधानमक से संयुक्त और शीतल निरूहको देवे और तिस निरूह बस्ति निकस में परिसिक्त अंगोंवाला वह मनुष्य शालिचावलोंको जांगल देशके मांसके रसके संग अथवा दूधके संग खावै॥ १५ ॥ ऐसा मनुष्य दाह अतिसार प्रदररोग रक्तपित्त हृद्रोग पांडुरोग विषमज्वर गुल्म मूत्रग्रह कामला आदियों को और पित्तसे किये सब रोगोंको नाशता है ॥ १६ ॥ कोशातकारग्वधदेवदारुमूर्वाश्वदंष्ट्रा कुटजार्कपाठाः ॥ पक्त्वा कुलत्थान्बृहतीं च तोये रसस्य तस्य प्रसूता दश स्युः ॥ १७॥ तान्सर्षपैलामदनैः सकुष्ठैरक्षप्रमाणैः प्रसृतैश्च युक्तान् ॥ क्षौद्रस्य तैलस्य फलाह्वयस्य क्षारस्य तैलस्य ससर्पिषश्च ॥ १८ ॥ दद्यानिरूहं कफरोगिताय मन्दाग्नये चाशनविद्विषे च ॥
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कोशातक अमलतास देवदार मूर्वा गोखरू कूडा आक पाठा कुलथी बडीकटेहली इन्होंको बानीमें पकावै वह रस ८० तोले होवै ॥ १७॥ और सरसों इलायची मैनफल कूठ ये एक २ तोले और शहद तैल फलाह्वयतेल क्षारतेल घृत ये सब आठआठ तोले । १८ ॥ कफरोगी के अर्थ मंदाग्निवालेके अर्थ और भोजनसे वैर करनेवालेके अर्थ इस निरूह बस्तिको देवै ॥
वक्ष्ये मृदून्स्नेहकृतो निरूहान्सुखोचितानां प्रसृतैः पृथक्स्युः ॥ ॥ १९ ॥ अथेमान्सुकुमाराणां निरूहान्स्नेहवान्मृदून्॥ कर्मणा विप्लुतानां तु वक्ष्यामि प्रसृतैः पृथक् ॥ २० ॥
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अब हम कोमल और स्नेहसे करी निरूहबस्तियों को पृथक् पृथक् प्रसृतोंकरके सुखोचित मनुष्यों के वास्ते वर्णन करेंगे ॥ १९ ॥ कर्मकरके विस्रुतये सुकुमारोंके अर्थ स्नेहनरूप और कोमल इन निरूहबस्तियोंको पृथक् प्रसृतों करके वर्णन करेंगे ॥ २० ॥
क्षीरा प्रसृत कार्यो मधुतैलघृतात्रयः ॥ खजेन मथितो वस्तिर्वातघ्नो बलवर्णकृत् ॥ २१ ॥