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( ५९४ )
अष्टाङ्गहृदये
ञ्जीर्णे स्यान्मधुराशनः ॥ ५५ ॥ वातश्लेष्मामयान्सर्वान्हन्या
द्विषगरांश्च सः ॥
हींग कुटकी वच कालाअतीस इंद्रजव गोखरू पीपल पीपलामूल चव्य चीता सूंठ ये एक एक तोलाभर लेवै और पांचोंनमक चार तोलाभर लेवै ॥ ५३ ॥ घृत १६ तोले तेल १६ तोले दही १२८ तोले इन्होंमें पूर्वोक्त औषधोंको कूटके क्वाथ बनावे कोमल अग्निके द्वारा प्रविष्ट हुये रसको होजानेमें ॥ ५४ ॥ पीछे भीतरही धूमा रहै ऐसे द्रव्यको कलशेमें दग्धकर और चूरन बना और घृतसे संयुक्तकर एक तोलेभरको पीवै पीछे जीर्ण हो जाने मधुर पदार्थोंको भोजन करनेवाला मनुष्य ॥ ५५ ॥ सबप्रकारके बात और कफके रोगोंके सब प्रकारके विप और गरौंको नाशता है || भूनिम्बं रोहिणी तिक्तां पटोलं निम्बपर्पटम् ॥ ५६ ॥ दग्ध्वा मापिसूत्रेण पिवेदग्निविवर्द्धनम् ॥ द्वे हरिद्रे वचा कुष्ठं चित्रकःकटुरोहिणी ॥ ५७ ॥ मुस्ता च छागमूत्रेण सिद्धः क्षारोऽग्निवर्द्धनः ॥ और चिरायता कुटकी हरडे परवल नींव पित्तपापडा || १६ || इन्होंको दग्धकर भैसके मूत्रके संग पीवै, यह अग्निको बढाता है दोनो हलदी वच कूठ चीता कुटकी || १७ || नागरमोथा इन्होंका बकरी के मूत्र में सिद्ध किया खार अग्निको बढाता है ||
चतुष्पलं सुधाकाण्डात्रिपलं लवणत्रयात् ॥ ५८ ॥ वार्ताककुडवं चाकदष्टौ द्वे चित्रकात्पले ॥ दग्ध्वा रसेन वार्ताका गुटिका भोजनोत्तराः ॥ ५९ ॥ भुक्तमन्नं पचन्त्यासु कासश्वासार्शसां हिताः ॥ विषूचिका प्रतिश्यायहृद्रोगशमनाश्च ताः ॥ ६० ॥
और थूहरका कांडा १६ तोले और सेंधानमक कालानमक मनियारीनमक ॥ १८ ॥ ये बारह १२ तोले वार्ताकु १६ तोले दाख ३२ तोले चीता ८ तोले इन्होंको दग्ध कर पीछे वार्ताकुके समें करी और भोजन के उपरांत खाई गोली ॥ ५९ ॥ भोजन किये अन्नको तत्काल पकाती है और खांसी श्वास बत्रासीरको हित है और हैजा प्रतिश्याय हृद्रोगको शांत करती है ॥ ६० ॥
मातुलुङ्गराठी रास्ता कटुत्रयहरीतकी ॥ स्वर्जिकायावशूकाख्यौ क्षारौ पञ्च पटूनि च ॥ ६१ ॥ सुखाम्बुपीतं तच्चूर्ण बलवर्णाशिवर्द्धनम् ॥श्लैष्मिके ग्रहणीदोषे सवाते तैर्धृतं पचेत् ॥ ६२ ॥ धान्वन्तरं षट्पलं च भल्लातकघृताभयम् ॥
विजोरा कचूर रायशण सूंठ मिरच पीपल शाजीखार जवाखार मनियारीनमक सेंधानमक काला नमक साधारणनमक सांभरनमक ॥ ६१ ॥ इन्होंका चूर्ण गरमपानीके संग पान किया बल वर्ण अग्निको बढाता है, और वातसे अन्वित कफकरके उपजे ग्रहणी दोषों में विजे.राआदि पूर्वोक्त औष
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