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चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (६१९) के ऊपर जो स्नावरूप रोगहै तिसको पहिलेकी तरह दग्ध करै ॥ ५० ॥ अन्यवैद्योंने यह विधि कहीहै वातकफसे उपजे गुल्मरोगों और प्लीहरोगों और विश्वाचीधातमें जिस पार्श्वमें रोग होवै तिसी पार्श्वमें कनिष्ठिका और अनामिका अंगुलियोंके ऊपर जो तातोंके समान स्नावपीतरोगहै तिसको तिरछा छेदित कर अग्निके द्वारा दग्ध करै ॥ ११ ॥ इति बेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकायां
चिकित्सितस्थाने त्रयोदशोऽध्यायः ॥ १३ ॥ चतुर्दशोऽध्यायः।
-CORDoअथातो गुल्मचिकित्सितं व्याख्यास्यामः । इसके अनंतर गुल्मचिकित्सितनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे। गुल्मं बद्धशकृद्वातं वातिकं तीनवेदनम्।।रूक्षशीतोद्भवं तैलैः साधयेद्वातरोगिकैः॥१॥पानान्नान्वासनाभ्यङ्गैःस्निग्धस्यस्वेदमाचरेत् ॥ आनाहवेदनास्तम्भविबन्धेषु विशेषतः॥२॥स्रोतसां मार्दवं कृत्वा जित्वा मारुतमल्बणम् ॥ भित्त्वा विबन्धं स्निग्धस्य स्वेदो गुल्ममपोहति ॥३॥ विष्ठा और अधोवातको रोकनेवाले और तीव्रपीडावाले रूक्ष और शीतलपदार्थसे उपजनेवाले वातकी अधिकतावाले गुल्मको वातकी चिकित्सामें कहेहुये सेलोंकरके साधित करै ॥ १॥ पान अन्न अनुवासन अभ्यंग करके स्निग्धमनुष्यके स्वेदको आचरित करै और अफारा शूल स्तंभ विबंधमें विशेषतासे स्वेदको आचरित करै ॥ २ ॥ स्रोतोंकी कोमलता करके और बढेहुये वायुको जीतकर और विबंधको भेदित करके स्निग्धमनुष्यके स्वेद गुल्मको दूर करताहै ॥ ३ ॥
स्नेहपानं हितं गुल्मे विशेषेणोलनाभिजे ॥
पक्वाशयगते बस्तिरुभयं जठराश्रये ॥४॥ विशेषकरके नाभिसे ऊपर उपजे गुल्ममें स्नेहका पान हितहै और पक्वाशयमें प्राप्त हुये. गुल्ममें बस्तिकर्म हितहै और पेटमें आश्रित हुये गुल्ममें दोनों हितहैं ॥ ४ ॥
दीप्तेऽग्नौ वातिकेगुल्मे विवन्धेऽनिलवर्चसोः॥बृहणान्यन्नपानानिस्निग्धोष्णानि प्रदापयेत् ॥५॥पुनःपुनः स्नेहपानं निरूहाः सानुवासनाः॥प्रयोज्या वातजे गुल्मे कफपित्तानुरक्षिणः॥६॥
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