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(४७८)
अष्टाङ्गहृदयेऔर विधिके अनुसार बलको रक्षा करनेवाले मनुष्यने ऊर्ध्वगत रक्तपित्तमें मंथआदि और अधोगत रक्तपित्तमें पेयाआदि विधि प्रयुक्त करनायोग्यहै ॥
मन्थो ज्वरोक्तो द्राक्षादिः पित्तनैर्वा फलैः कृतः॥ १२॥ मधु खर्जूरमृद्वीकापरूषकसिताम्भसा॥ मन्थो वा पञ्चसारेण सघ्र तैर्लाजसक्तुभिः॥१३॥ दाडिमामलकाम्लो वा मन्दाग्न्यम्ला भिलाषिणाम् ॥ .
और ज्वरमें कहाहुआ द्राक्षादिमंथ अथवा पित्तको नाशनेवाले फलों करके कियाहुआ मंथ देना उचित है ॥ १२ ॥ अथवा मुलहटी खजूर मुनक्का फालसा मिसरी पानीकरके कियाटुआ मंथ अथवा पांचद्रव्योंकरके कियाहुआ मंथ अथवा घृतसहित धानकी खीलों करके कियाहुआ मंथ हितहै ॥ १३ ॥ मंदअग्निवाले और अम्लरसके अभिलाषावाले मनुष्योंको अनार और आमलाकरके अम्लरूप मंथका देना उचित है। कमलोत्पलकिञ्जल्कपृश्निपीप्रियङ्गुकाः ॥१४॥ उशीरं शाबरं रोभ्रंशृङ्गावरं कुचन्दनम् ॥ ह्रीबेरं धातकीपुष्पं बिल्वमध्यं दुरा लभा ॥१५॥ अर्द्धाद्धे विहिता पेया वक्ष्यन्ते पादयोगिकाः ॥ भूनिम्बसेव्यजलदा मसूरः पृश्निपर्ण्यपि ॥ १६ ॥
और कमल, नीलीकमल, कमलकेसर, पृश्निपर्णी, प्रियंगु करके ॥ १४ ॥ और खस, साबरलोध, लोध अदरक पीले चंदन करके और नेत्रवाला धक्का फूल वेलगिरीका गूदा धूमासा करके ॥१५ और चिरायता, कालावाला, नेत्रवाला, तथा मसूर और पृश्चिवर्णी करके ॥ १६ ॥
विदारिगन्धा मुद्दाश्च वला सर्पिहरेणुका॥जाङ्गलानि च मांसानि शीतवीर्याणि साधयेत् ॥१७॥ पृथक्पृथग्जले तेषां यवागूः कल्पयेद्रसे॥ शीताः सशर्कराः क्षौद्रास्तद्वन्मांसरसानपि॥ ॥ १८ ॥ ईषदम्लाननम्लान्या वृतभृष्टान्सशर्करान् ॥ विदारीगंधा और भूगोकरके खरेहटी घृत मटर इन्होंकरके सिद्धकरी पेया देनी हितहै और शीतलवार्यवाले और जांगलदेशमें होनेवाले मांसोंको पानीमें अलग अलग शोध ॥ १७ ॥ पछि इन मांसोंके रसमें यवागूको कल्पितकरे और शीतल तथा खांडसे और शहदसे संयुक्त मांसरसोंको ॥ १८ ॥ अम्लकी इच्छाकरनेवालोंको कछुक अम्लरूप और अम्लरसकी नहीं इच्छाकरनेवालोंको अम्लसे रहित और घृतकरके भुनेहुये और खांडसे संयुक्त मांसरसोंको देवै ॥
शुकशिम्बीभवं धान्यं रक्ते शाकं च शस्यते ॥ १९ ॥ अन्नस्वरूप विज्ञाने यदुक्तं लघु शीतलम् ॥ पूर्वोक्तमम्बुपानीयं पञ्चमूलेन वा शृतम् ॥ २०॥ लघुना तशीतं वा मध्वम्भो वा फलाम्बु वा ॥
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