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चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । आकाशसे वर्षा शीतल और शहदसे संयुक्त पानी हितहै और पवित्र पृथ्वीसे उपजा पानीभी हितहै ।। ५९ ॥ तप्तरूप लोष्ट कपाल बालू रेत इन आदिकरके बुझायाहुआ और शीतल किया अथवा खांडसे संयुक्त पानी श्रेष्ठहै अथवा डाभ आदि पंचमूलकरके कथित किया पानी श्रेष्ठहै ॥६॥अथवा धानकी खीलोंके सत्तुओंकरके कियाहुआ मंथ श्रेष्टहै अथवा कच्चेजबों करके बनायाहुआ और शीतल और खांड तथा शहदकरके युक्त बाट्य हितहै ॥ ६१ ॥ अथवा शालीचावलों करके बनीहुई तथा पुराने कोदूकरके बनीहुई खांड तथा शहदसे संयुक्त यवागू हितहै तथा शीतल किये द्रव्यकरके और शीतल वीर्यवाले द्रव्योंकरके सिद्ध किये द्रव्योंकरके बने भोजन हितहैं ॥ ६२ ॥ अथवा शीतल पानी करके सेचित किये मनुष्यके दूधकरके सहित मिसरसेि संयुक्त मार्दीकमदिरा हितह तथा अम्लपनेसे रहित और सलोने और घतमें भुनेहुये जांगलदेशके मांसोंके रसोंकरके भोजन करना हितहै ॥ ६३॥ जीवनीयगणके औषधोंके रसोंसे युक्त मूंगआदिके यूषों करके भोजन हितहैं, और दूधसे उपजा व्रत तथा शीतलवीर्यवाले चंदनआदि द्रव्योंकरके सिद्ध किया घृत तथा ईखके रसमें सिद्ध किया घृत नस्यमें हितहै ॥ ६४ ॥ और सूत्रस्थानमें कहेहुये रोपण करनेवाले गंडूष अर्थात् गरारे हितहैं और दाहवरमें कहेहुये लेप आदि हितहैं और व्यापारआदिका नहीं करना और मनकी प्रीति ॥ ६५ ॥ और बडी नदियोंका वडेतलाव आदियोंका देखना और स्मरण करना आदि ये सब सामान्यसे तृषारोगमें हितहै ॥
तृष्णायां पवनोत्थाया सगुडं दधि शस्यते ॥६६॥ रसाश्च बृंहणाः शीता विदार्यादिगणाम्बु वा॥ और पवनसे उपजी वृपामें गुड के साथ दही श्रेष्टहै ।। ६६ ॥ और बृंहण तथा शीतल और विदारी आदिगणका रस और मांसोंके रस ये हितहैं ॥
पित्तजायां सितायुक्तः पक्कोदुम्बरजो रसः॥६७॥ तत्काथो वा हिमस्तद्वत्सारिवादिगणाम्बु वा ॥ तद्विधैश्च गणैः शीतकषायान्ससितामधून॥६८॥मधुरैरौषधैस्तद्वत्क्षीरीवृक्षश्चकल्पितान् ॥ बीजपूरकमृद्वीकावटवेतसपल्लवान् ॥ ६९ ॥ मूलानि कुशकाशानां यष्ट्याह्नं च जले शृतम् ॥ ज्वरोदितं वा द्राक्षादिपञ्चसाराम्बु वा पिवेत् ॥७०॥
और पित्तसे उपजी तृषामें मिसरीसे संयुक्त पकाहुआ गूलरका रस हितहै ॥ ६७ ॥ अथवा पकेहुये गूलरका काथ तथा हिम हितहै तथा शारिवादिगणका पानी हितहै और शीतलवीर्यवाले गणोंकरके करेहुये और मिसरी और शहदसे संयुक्त शीत काथोंको पावै ॥ ६८ ॥ और तैसेही मधुरऔषधोंकरके और दूधवाले वृक्षोंकरके कल्पित किये मिसरी और शहदसे संयुक्त किये शीतल कषायोंको पावै और बिजोरा मुनक्का वड अम्लवेतसके पत्ते ॥ ६९ ॥ डाभ और कांशकी जड
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