________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
निदानस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (३९७ ) प्रसेक, मुखमें विरसपना, अरुची, तृषा, ग्लानि, भ्रम, पेटपै अफारा, छर्दि, कर्णक्ष्वेडरोग, आंतोका बोलना ये उपजते हैं ॥ २०॥ माडापन, धूमा निकसना, सूक्ष्म ज्वर, मूर्छा, शिरमें शूल, विष्टंभ, हाथ और पैरोंमें शोजा यह चारप्रकारके ग्रहणी रोगका सामान्य लक्षण है ॥ २१ ॥
तत्रानिलात्तालुशोषस्तिमिरं कर्णयोः स्वनः ॥ पाश्वोस्वंक्षण ग्रीवारुजाऽभीक्ष्णं विषूचिका ॥ २२ ॥ रसेषु गृद्धिः सर्वेषु क्षुत्तृष्णा परिकर्तिका ॥ जीर्णे जीर्यति चाध्मानं भुक्ते स्वास्थ्य समश्नुते ॥ २३ ॥ वातहृद्रोगगुल्मार्शःप्लीहपाण्डुत्वशङ्कितः॥ चिरादुःखं द्रवं शुष्कं तन्वामं शब्दफेनवत् ॥ २४॥ पुनःपुनः
सृजेद्वर्चः पायुरुक्छासकासवान् ॥ तिन चारोंमें वातसे उपजे ग्रहणीरोगमें तालुशोष, तिमिररोग, दोनों कानोंमें शब्द और पशली जंघा, अंडसंधि, ग्रीवा इन्हों में अत्यंत पीडा और विचिका ॥ २२ ॥ सब रसोंमें आकांक्षा, क्षुधा, तृषा, परिकर्तिका ये उपजते हैं और जीर्ण होजानेपै और जर्णि होतेहुये पेटपै अफारा भोजनकरनेमें स्वस्थपनाकी प्राप्ति ॥ २३ ॥ और वातरोग, हृद्रोग, गुल्म, अर्शरोग, प्लीहारोग, पांडुरोग इन्होंकी शंकावाला और चिरकालसे दुःखकरके पतला और सूखा और सूक्ष्म तथा कच्चा शब्द और झागोंसे संयुक्त विष्टाको ॥ २४ ॥ बारंबार रचनेवाला और गुदामें शूलवाला और खांसी तथा श्वास वाला ऐसा मनुष्य होजाता है।
पित्तेन नीलं पीताभं पीताभःसृजति द्रवम्॥२५॥पूत्यम्लोद्गार हृत्कंठदाहारुचितृडदितः॥ श्लेष्मणा पच्यते दुःखमन्नं छर्दिररोचकः॥२६॥आस्योपदेहनिष्ठीवकासहृल्लासपीनसाः॥ हृदयं. मन्यते स्त्यानमुदरं स्तिमितं गुरु ॥ २७॥ उद्गारो दुष्टमधुरः सदनं स्त्रीष्वहर्षणम् ॥ भिन्नामश्लेष्मसंसृष्टगुरुवर्चःप्रवर्त्तनम्
॥ २८॥ अकृशस्यापि दौर्बल्यं सर्वजे सर्वसंकरः॥ . और पित्तकरके उपजे ग्रहणीरोगमें नीला और पीलीकांतिवाला और पतला पीलीकांतिवाला मल निकलता है ॥ २५ ॥ दुर्गंधित और खट्टी डकार, हृदय और कंठमें दाह और अरुची, तृषासे पीडितहुआ मनुष्य निकालता है और कफकरके उपजे ग्रहणीरोगमें दुःखसे अन्न पकता है और छौं, अरोचक ॥ २६ ॥ मुखका लेप, थुकथुकी, खांसी, पीनस रोग उपजते हैं और पिंडितकीतरह हृदय होता है निश्चलं तथा भारी पेट होता है ॥ २७ ॥ दुष्ट और मधुर डकार आती हैं शरीरकी शिथिलता स्त्रियोंमें आनंदका अभाव, भिन्नरूप, आम और कफसे मिलाहुआ भारी विष्ठा निकलता है ।। २८ ॥ पुष्ट मनुष्यकोभी दुर्बलता होजाती है और सन्निपातसे उपजे ग्रहणीरोगमें ये तीनों दोषोंके सब लक्षण मिलेहुये होते हैं ।
For Private and Personal Use Only