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सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् ।
(५५) महास्तस्यानुकलंमस्तं चाप्यनु ततः परे ॥
यवका हायनाः पांसुबाष्पनैषधकादयः॥४॥ रक्तशालिके पश्चात् महाशालि श्रेष्ठ है, और महाशालिके पश्चात् कलमशाल श्रेष्ठ अर्थात् माहाशालिसे कलम कछुकहीनहै, और तिस कलमसे पश्चात् अन्य लवशालि श्रेष्ठहै और यवक-हायन पांसुबाष्प नैषधकादि येभी शालिविशेष हैं ।। ४ ॥
स्वादृष्णा गुरवः स्निग्धाःपाकेम्लाः श्लेष्मपित्तलाः॥
सृष्टमूत्रपुरीषाश्च पूर्वं पूर्वं च निन्दिताः॥५॥ ये सब स्वादु है गरम हैं भारे है चिकने है पाकमें खट्टे हैं कफ और पित्तको देते हैं मूत्र और विष्ठाको रचते हैं ये पूर्व २ क्रमसे निंदित हैं ॥ ५ ॥
स्निग्धो ग्राही गुरुः स्वादुस्त्रिदोषघ्नः स्थिरो हिमः॥
षष्टिको व्रीहिषु श्रेष्ठो गौरश्चासितगौरतः ॥६॥ साठी चावल चिकना है स्तंभन है भारी है स्वादु है त्रिदोषको नाशताहै स्थिर है शीतल है और ब्रीहियोंमें श्रेष्ठ है, और कृष्णता सहित सफेद साठी चाबलसे सफेद साठी चावल श्रेष्ठ है॥६॥
ततः क्रमान्महाबीहिकृष्णवीहिजतूमुखाः॥
कुक्कुटाण्डकपालाख्यपारावतकशूकराः ॥७॥ __ महाबीहि वर्षामें पकते हैं यह छडनेसे सफेदरंगके होते हैं देरमें पकते हैं, जिसके तुष और तंदुल काले हैं वह कृष्णवीहि, जिसकेमुखका वर्ण लाखके समान हो वह जतुमुख जिसका आकार मुरगके अण्डके समान हो वह कुछुटाण्ड । इत्यादि जान्ने । पीछे क्रमसे महाव्रीहि कृष्णवीहि जतुमुख कुकुटांड कपालाख्य पारावतक सूकर ॥ ७॥
वरकोदालकोज्ज्वालचीनशारददर्दुराः॥
गन्धनाः कुरुविन्दाश्च गुणैरल्पान्तराः स्मृताः॥८॥ वरक-उद्दालक--उज्ज्वाल-चीन--शारद-दर्दुर-गंधन-कुरुविंद ये सब व्रीहि अर्थात् चावल साठी चावलसे गुणोंकरके क्रमसे हीनहैं ॥ ८ ॥
स्वादुरम्लविपाकोऽन्यो व्रीहिः पित्तकरो गुरुः ॥
बहुमूत्रपुरीषोष्मा त्रिदोषस्त्वेव पाटलः ॥९॥ इन साठी आदि चावलोंसे अन्य व्रीहिसंज्ञक चावल स्वादुहै, पाकमें खट्टा पित्तको करताहै, भारी है और मूत्र--विष्टा-गरमाईके बहुतपनेसे युक्त है, और पाटलबीहि त्रिदोषको करताहै ॥९॥
कङ्गुकोद्रवनीवारश्यामाकादि हिमं लघु॥
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