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(२१४)
अष्टाङ्गहृदयेपञ्चविंशतितमोऽध्यायः। अथातो यन्त्रविधिमध्यायं व्याख्यास्यामः। इसके अनंतर यंत्रविधिनामवाले अध्यायको च्याख्यान करेंगे ।
नानाविधानां शल्यानां नानादेशप्रवेधिनाम् ॥
आहर्तुमभ्युपायो यस्तद्यन्त्रं यच्च दर्शने ॥१॥ अनेकप्रकारके जो शल्य, वंश, पत्थर आदिरूप शल्य अनेकप्रकारके शरीरके प्रदेशोंमें प्रवेश करते हैं तिन्होंको निकासनेके अर्थ और देखनेके अर्थ जो उपाय है वह यंत्र कहाता है ॥ १ ॥
अर्शोभगन्दरादीनां शस्त्रक्षाराग्नियोजने ॥
शेषाङ्गपरिरक्षायां तथा बस्त्यादिकर्मणि ॥ २॥ बवासीर, भगंदर, नाडीव्रण, आदियोंमें शस्त्र, खार, अग्नि इन्होंके योजन करनेमें शेप रहे अंगकी रक्षा करनेमें और बस्तिआदिकर्ममें जो उपाय है तिसको यंत्र कहते हैं ॥ २ ॥
घटिकालाबुशृङ्गश्च जाम्बवोष्ठादिकानि च ॥
अनेकरूपकार्याणि यन्त्राणि विविधान्यतः॥३॥ घटिका, तूंबी, शिंगी, जांझोष्ठक आदि और अनेकरूप तथा अनेक कार्योवाले यंत्र अनेक प्रकारके हैं ॥ ३॥
विकल्प्य कल्पयेद् बुद्धया यथा स्थूलं तु वक्ष्यते ॥
तुल्यानि कडूसिंहक्षकाकादिमृगपक्षिणाम् ॥ ४॥ इस कारणसे बुद्धिके अनुसार कल्पना करके कार्यके अनुरोधसे यंत्रोंको बनवावै परंतु स्थूलरूप जो यंत्र है तिन्होंको वर्णन करते हैं कंक अर्थात् जलकाक, सिंह रीछकाक, गीध, मृग इन्होंके॥४॥
मुखैर्मुखानि यन्त्राणां कुर्यात्तत्संज्ञकानि च ॥
अष्टादशाङ्गुलायामान्यायसानि च भूरिशः॥५॥ मुखोंकरके समानमुखवाले और तिसतिस अर्थात् कंकयंत्र इत्यादि नामोंसे विख्यात यंत्र करने उचित हैं परंतु १८ अंगुलोंकी लंबाईसे संयुक्त और बहुत जगहसे लोहाके बने हुये ॥ ५ ॥
मसूराकारपर्यन्तैः कण्ठे बद्धानि कीलकैः ॥ विद्यात्स्वस्तिकयन्त्राणि मूले कुशनतानि च ॥६॥ और मसूरके आकारके समान आकारवाले कीलोंकर बँधेहुये और हाथसे ग्रहण करनेकी जगहमें अंकुशकी तरह नम्र हुये स्वस्तिकयंत्र जानने ॥ ६ ॥
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