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( ३४४ )
अष्टाङ्गहृदये
दही, चावल, अथवा, यत्र, ईख, चोला, मेहँदी, शहद, घृत, मोहनभोग, अंजन, सोनाका वर्तन, घंटा, दीपक, कमल, इन्होंका ॥ ३० ॥ और दूब, गीला मछलीका मांस, धान्यकी खील, फल, लड्डूआदि सीरनी, पद्मरागआदि रत्न, हाथी, जल आदिकरके पूर्ण कलश, कन्या, रथ इन्होंका ॥ ३१ ॥ शूरवीरता आदिकरके वृद्धिको प्राप्तहुए मनुष्यका और देवताओंका और राजाका और सफेदरंग के फूल, बाल, चमर, वस्त्र, घोडा इन्होंका ॥ ३२ ॥ और शंख, सुंदर ब्राह्मण, पगडी, तोरण स्वस्तिक और अच्छीतरह उद्धृतहुई पृथ्वीका और प्रज्वलितदुई अग्निका ॥ ३३ ॥ और मनोहररूप अन्न और पानका और मनुष्योंकर के पूरितहुई गाडीका और बछडेसहित गायका और घोडीका और स्त्रीका || ३४ ॥ और चकोरपक्षी हिरन, सारसपक्षी प्रिय बोलनेवाले पक्षीक और गोलरूपगहना, ससा, शरसों, गोरोचन इन सबका दर्शन अर्थात् देखना ॥ ३९ ॥ और सुंदरगंध सुंदरसफेदवर्ण और मधुररस और क्रोधसे रहित बेलका शब्द और क्रोधसे रहित गायका शब्द ॥ ३६ ॥ और मृग, पक्षी, नरकी और शोभावाले जीवोंकी वानी और छत्र, ध्वजा, बडीपताकाका स्थापन और जयजयशब्दरूप स्तुति ॥ ३७ ॥ भेरी मृदंग शंख इन्होंके शब्द और पुण्याहवाचनके शब्द और वेदके अध्ययनकेशब्द और सुखको देनेवाला अनुकूलवायु ॥ ३८ ॥ ये सब वैद्यको मार्गमें तथा रोगीके स्थान में प्रवेशकरनेके वख्त प्राप्त हुए शुभ शकुन रोगीके अर्थ आरोग्यको करते हैं |
इत्युक्तं दूतशकुनं स्वमानूर्द्धं प्रचक्षते । ३९ ॥
इस प्रकारसे दूत और शकुन कहा और इसके उपरांत स्वप्नोंको वर्णन करेंगे ॥ ३९ ॥ स्वप्ने मद्यं सह प्रेतैर्यः पिवन्कृप्यते शुना ॥ स मर्त्यो मृत्युना शीघ्रं ज्वररूपेण नीयते ॥ ४० ॥ रक्तमाल्यवपुर्वस्त्रो यो हसह्रियते स्त्रिया ॥ सोऽत्रपित्तेन महिषश्ववराहोष्ट्र गर्दभैः ॥ ४१ ॥ यः प्रयाति दिशं याम्यां मरणं तस्य यक्ष्मणा ॥ लता कण्टकिनी वंशस्तालो वा हृदि जायते ॥ ४२ ॥ यस्य तस्याशु गुल्मेन यस्य वह्निमनचिषम् ॥ जुह्वतो घृतसिक्तस्य नग्नस्योरसि जायते ॥ ४३ ॥ पद्मं स नश्येत्कुष्टेन चाण्डालैः सह यः पिबेत् ॥ स्नेहं बहुविधं स्वप्ने स प्रमेहेण नश्यति ॥ ४४ ॥
जो स्वप्नमें प्रेतोंके संग मदिराको पोता हुआ मनुष्य कुत्तों करके खैचाजाये वह ज्वररूप मृत्युकरके शीघ्रही मर जाता है ॥ ४० ॥ जो स्वप्नेमें लाल माला और लाल शरीर और लाल वस्त्रको धारण करनेवाला और हँसता हुआ मनुष्य स्त्री करके खैंचा जावे वह रक्तपित्तकरके शीघ्र ही मृत्युको प्राप्त होता है और भैंसा, कुत्ता, शूकर, ऊंट, गधे करके ॥ ११ ॥ जो मनुष्य
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