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शारीरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (३१५) और पृष्टवंशके दोनोंतर्फ श्रोणी और कर्ण दो मर्म स्थित हैं ॥ १७ ॥ और वंशमें आश्रित हुये कूलोंके ऊपर कटिक और तरुण दो मर्म स्थित हैं तिन्होंमें चोट लगजाये तो पांडु और हीनरूपवाला रक्तके क्षयसे मनुष्य मरजाता है ॥ १८ ।। पृष्ठवंशके दोनोंतर्फ कटि और पार्यो में जघनस्थानके बहिर्भागमें कुकुंदरनामवाले दो संधिमर्म हैं ॥ १९ ॥ तहां चोट लगजावे तो चेष्टाकी हानी और नचिके शरीरमें स्पर्शका अज्ञान उपजता है और पसलियोंकरके मध्यमें बँधेहुये
और श्रोणीमर्म तथा कर्णमर्मके ऊपर ॥ २० ॥ मूत्रआदि आशयोंके आधाररूप औरतरुणसंज्ञक हड्डियोंमें स्थित दो नितंबमर्म हैं तहां चोट लगजाये तो नचिके शरीरमें शोजा दुर्बलता मृत्यु उपजती है ॥ २१॥
पाश्र्वान्तरनिबद्धौ च मध्ये जघनपार्श्वयोः ॥ तिर्यगूर्व च निर्दिष्टौ पार्श्वसन्धी तयोर्व्यधात् ॥ २२ ॥ रक्तपूरित कोष्ठस्य शरीरान्तरसम्भवः ॥ स्तनमूलार्जवे भागे पृष्ठ वंशाश्रये शिरे ॥ २३ ॥ बृहत्यौ तत्र विद्धस्य मरणं रक्त संक्षयात् ॥ बाहुमूलाभिसम्बद्धे पृष्ठवंशस्य पार्श्वयोः ॥२४॥ अंसयोः फलके वाहुस्वापशोषौ तयोर्व्यधात् ॥ ग्रविामुभयतः स्नानी ग्रीवावाहुशिरोन्तरे ॥२५॥ स्कन्धांसपीठसम्बन्धावंसों वाहुक्रियाहरौ।कण्ठनाडीमुभयतःशिराहनुसमाश्रिताः॥२६॥ चतस्रस्तासु नीले द्वे मन्ये द्वे मर्मणी स्मृते ॥ स्वरप्रणाशवै कृत्यं रसाज्ञानं च तद्वयधे ॥ २७॥ कण्ठनाडीमुभयतो जिह्वा । नासागताः शिराः ॥ पृथक्चतस्रस्ताः सद्यो अन्त्यसन्मातृकाहयाः॥ २८॥ पावोंके मध्यमें बंधेहुये और जघनके पावों में तिरछे और ऊंच स्थित हुये ऐसे दो पार्श्वसंधिमर्म हैं तिन्होंमें चोट लगजानेसे ॥ २२ रक्तसे पूरितकोष्टवाला मनुष्य होके मृत्युको प्राप्त होजाता है और चूँचियोंके मूलके कोमल भागमें पृष्टके वांसके आश्रित हुई दो नाडियां हैं ॥ २३ ॥ वे दोनों बृहतीमम कहाते हैं तहां चोट लगै तो रक्तके नाश होनेसे मनुष्य मरता है और पृष्टवंशके पाश्वोंमें बाहुके मूलसे बँधेहुये ॥ २४ ॥ अंसफलकाख्य दो मर्म हैं तिन्होंमें चोट लगजाये तो बाहुका शयन और बादशोष उपजते हैं और ग्रीवाके दोनों पाश्चोंमें ग्रीवा और बाहु शिरके अंतरमें स्नानीनाम दो मर्म है ॥ २५ ॥ अर्थात् कंधा पीठ इन्होंमें संबंधवाले दो अंस हैं इन्हीं में चोट लगजावे तो बाबुके प्रतारण और आकुंचनआदि कर्मका नाश होजाता है और कंटकी नाडीके दोनोंतर्फ और ठोडीमें आश्रित हुई।॥ २६ ॥ चार नाडियां हैं तिन्होंमें दो नीलमर्म हैं और दो मन्यामर्म है तिन्होंमें चोट लगजावै तो स्वरका नाश, स्वरकी विकृति, रसका अज्ञान ये अजते
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