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अष्टाङ्गहृदये
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त्र्यंगुलास्यं भवेच्छ्रेगं चूषणेऽष्टादशागुलम् ॥ अग्रे सिद्धार्थकच्छिद्रं सुनद्धं चूचुकाकृति ॥ २६ ॥
तीन अंगुलके मुखसे संयुक्त और अठारह अंगुलप्रमाण लंबाईसे संयुक्त और अग्रभागमें सरसोंके समान छिद्रसे संयुक्त और अच्छीतरह बँधाहुआ और स्त्रीकीकुचाके अग्रभागके समान आकृति वाला शृंगयंत्र दुष्टवात और दूधआदिका चूषणके अर्थ बनाना ॥ २६॥ स्याद्वादशांगुलोऽलाबुर्नाहे त्वष्टादशांगुलः ॥
चतुख्यगुलवृत्तास्यो दीप्तोऽन्तः श्लेष्मरक्तहृत् ॥ २७ ॥
बारह अंगुलकी लंबाईसे संयुक्त और अठारह अंगुलकी मुटाईसे संयुक्त और चार अथवा तीन अंगुलकी गुलाई से संयुक्तमुखवाला और भीतरसे प्रकाशित हुआ ऐसे तुम्बीयंत्र कफके और रक्तको हरनेके वास्ते बनाना ॥ २७ ॥
तद्वद्वटी हिता गुल्मविलयान्नमने च सा ॥
शलाकाख्यानि यन्त्राणि नानाकर्माकृतीनि च ॥ २८ ॥
और इसी तुम्बीयन्त्रकी तरह वटीयन्त्र बनाना यह गुल्मके घटाने और बढानेंमें भी काम आता है और नानाप्रकारके कर्मोंवाले और नानाप्रकारकी आकृतियोंवाले ॥ २८ ॥ यथायोगप्रमाणानि तेषामेषणकर्मणी ॥
उभे गण्डूपदमुखे स्रोतोभ्यः शल्यहारिणी ॥ २९॥
और यथायोग्यप्रमाणसे संयुक्त ऐसे शलाकायन्त्र बनाने तिन्होंके मध्य में गण्डूपद अर्थात् गिडोआके मुखके समान मुखवाले और एपणकर्मको करनेवाले और नाडीके स्रोतोंसे शल्यको हरनेवाले ॥ २९ ॥
मसूरदलवक्रे द्वे स्यातामष्टनवांगुले ॥
शङ्कवः पडुभौ तेषां षोडशद्वादशांगला ॥ ३० ॥
और मसूरका पत्रके समान मुखवाले और क्रमसे आठ तथा नौ अंगुलप्रमाण लंबाईवाले ऐसे दो शलाकायन्त्र बनाने और छः शंकुयंत्र होते हैं तिन्होंमेंसे दो शंकुयन्त्र सोलह अंगुलकी तथा बारह अंगुलकी लंबाईवाले होते हैं ॥ ३० ॥
व्यूहने हिणव द्वौ दशद्वादशांगुलौ ॥
चालने शरपुंखास्यो आहार्ये वडिशाकृती ॥ ३१ ॥
और व्यूहनकर्ममें सर्पकी फणके समान मुखवाले और दश अंगुल तथा द्वादश अंगुलकी लंबाईसे संयुक्त ऐसे दो शंकुयन्त्र होते हैं और चालनकर्ममें बाजका मुखके समान मुखवाले और आकर्षणकर्ममें बडिशके समान आकृतिवाले ऐसे दो शंकुबनाने ॥ ३१ ॥
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