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(२९२)
अष्टाङ्गहृदयेयोजयेद्दशमे मासि सिद्धं क्षीरं पयस्यया ॥
अथवा यष्टिमधुकनागरामरदारुभिः ॥६०॥ और दशवें महीनेमें काकोली आदिकरके अथवा मुलहटी, सूंठ, देवदार, महुआ, इन्होंकरके सिद्धकिये दूधको प्रयुक्त करै ॥ ६ ॥
अवस्थितं लोहितमङ्गनाया वातेन गर्भ ब्रुवतेऽनभिज्ञाः॥ गर्भाकृतित्वात्कटुकोष्णतीक्ष्णैः सुते पुनः केवल एव रक्ते॥६१॥ स्त्रीकी कुक्षिमें वायुकरके रुकेहुये रक्तको मूर्ख मनुष्य गर्भ कहते हैं क्योंकि वह गर्भके समान आकृतिवाला होता है और कटु, गरम, तीक्ष्ण द्रव्योंकरके जब वह रक्त झिरजाता है ॥ ६१ ॥
गर्भ जडा भूतहृतं वदन्ति मूर्तेर्न दृष्टं हरणं यतस्तैः ।।
ओजोशनत्वादथवाऽव्यवस्थैर्भूतैरुपेक्ष्येतन गर्भमाता ॥६२॥ तब मूर्ख मनुष्य भूतहृत अर्थात् भूतोंकरके नाशित किया गर्भ कहते हैं क्योंकि तिन भूताने शरीरका हरण नहीं देखा है अथवा पराक्रम खाजानेसे अव्यवस्थित भूतोंकरके हृत हुये गर्भको वह गर्भकी माता नहीं मानै ॥ ६२॥ इति बेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकायां
शारीरस्थाने द्वितीयोध्यायः ॥ २॥
तृतीयोऽध्यायः। अथातोऽङ्गविभागं शारीरं व्याख्यास्यामः। इसके अनंतर अंगविभागनामक शारीरअध्यायका व्याख्यान करेंगे।
शिरोऽन्तराधिद्वौ बाहू सक्थिनी च समासतः ॥
षडङ्गमङ्गं प्रत्यङ्गं तस्याक्षिहृदयादिकम् ॥१॥ शिर, अंतराधि, अर्थात् शिरबाहुसे वर्जित संपूर्ण मध्यभाग दो बाहू, दो सक्थि ऐसे संक्षेपसे छः प्रकारके अंग हैं तिस छःप्रकारके अंगके हृदय, कान, नाक, हाथ, पैर आदि प्रत्यंग है ॥ १ ॥
शब्दः स्पर्शश्च रूपं च रसो गन्धः क्रमाद्गुणाः॥ - खाऽनिलाऽग्न्यऽब्भुवामेकगुणवृद्धयन्वयः परे ॥२॥ शब्द, स्पर्श, रूप, रस गंधं ये गुण क्रमसे आकाश,वायु अग्नि, जल पृथ्वी इन्होंके हैं और वायु आदि महाभूतोंमें एक गुणकरके जो वृद्धि है तिसकरके संबंध है अर्थात् एक गुणवाला आकाश है और दो गुणोंवाला वायु है और तीन गुणोंवाला अग्नि है और चार गुणोंवाला जल है और पांचगुणोंवाली पृथ्वी है ॥ २॥
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