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(२९६)
अष्टाङ्गहंदयेहाथपैरकी मिलानेसे ६०० हुई कमरमें ६० पीठमें ८० कोखमें ६० उस सम्बन्धी ३० सब मिलकर २३० गर्दनमें ३६ मस्तकमें ३४ सब मिलकर ७० होती हैं ऐसे ९०० हुई महास्नायुओंको कंडरा कहते हैं हाथपैरोंकी संधियोंमें प्रतानवती स्नायु है वृन्तको कंडरा कहते हैं आमाशय पक्वाशय और बस्तीमें सुषिर है । पसवाड़े छाती पीठ शिरमें पृथुलस्नायु है और पुरुषके शरीरमें पांचसों पेशी हैं एक एक पैरकी उंगलियोंमें तीन तीन पेशी हैं सब मिलकर४५ हुईं पैरके अग्रभागमें १० पृष्ठभागमें १० गुल्फ और तालुमें १० गुल्फ और घुटनेके मध्यमें २० वंक्षणमें १० इसप्रकार एक पैरमें १०० चारहाथपैरोंमें ४०० हुई गुदामें तीन लिंगमें १ सीवनमें १ अंडकोश में २ कमरमें १ बस्तीके ऊपरके भागमें २ उदरमें ५ नाभिमें १० पैरोंमें १० ऊर्ध्वरचितलम्बी हैं कोखमें ५ वक्षस्थलमें १० दोनो कन्धे और अक्षकमें मिलकर ७ हृदय आमाशय यकृतप्लीह उंदकमें ६ पेशी हैं यह ६३ हुई परन्तु वृद्धवाग्भटके मतसे कोष्टमें ६० ऊर्वमें ४० पेशी हैं यथा नाडमें ४ ठोडीमें ८ कागमें १ गलेमें १ तालुमें२ जिह्वामें १ होठोंमें २ नाकमें दो नेत्रोंमें दो दोनो गालमें चार कानमें २ ललाटमें ४ मस्तकमें १ सब ३४ इस प्रकार ५०० हुई स्त्रियों के बीस अधिक हैं पांच पांच स्तनोंमें योनिमें ४ दो भीतर योनिकर्णिकाके पार्श्वमें वर्तुल तथा स्पर्श सुख देनवाली २ दो गर्भछिद्रमें तीन गर्भाशयम शुक्र आर्तवके प्रवेश करनेवाली ३ यह सब बीस हुई ॥ १७ ॥
अधिका विंशतिः त्रीणां योनिस्तनसमाश्रिताः॥
दश मूलशिरा हृत्स्थास्ताः सर्व सर्वतो वपुः ॥१८॥ ___ और स्त्रियोंके शरीरमें योनि और चूंचियोंमें आश्रित होनेवाली बीश पेशी अधिक होती हैं इसवास्ते पांचसौबीस पेशी जानना, और हृदयमें स्थित होनेवाली मूलनाडियां दश हैं, ये सबतर्फसे सकल शरीरमें ॥ १८ ॥
रसात्मकं वहन्त्योजस्तन्निबद्धं हि चेष्टितम् ॥
स्थूलमूलाः सुसूक्ष्मायाः पत्ररेखाप्रतानवत् ॥ १९॥ रससे उत्पन्न होनेवाले बलको प्राप्त करती हैं, और तिन दशनाडियोंमेंही चेष्टित अर्थात् वाणी शरीर मन इन्होंका व्यापार बंधाहुआ है, और सूक्ष्म अग्रभागवाली और स्थूल मूलौंवाली नाडियां । प्रत्तेके रेखाओंके प्रतानकी तरह ॥ १९ ॥
भिद्यन्ते तास्ततः सप्तशतान्यासां भवन्ति तु ॥
तत्रैकैकं च शाखायां शतं तस्मिन्न वेधयेत् ॥ २०॥ भेदित कीजाती हैं ऐसे वह नाडियां सात सों हैं तिन्होंमेंसे सौ सौ नाडिये एक एक सक्थिमें स्थित हैं, तिन शिराओंमें ॥ २० ॥
शिरां जालन्धरां नाम तिस्रश्चाभ्यन्तराश्रिताः॥ षोडशद्विगुणाः श्रोण्यां तासां द्वे द्वे तु वकणे॥२१॥
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