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( १०८) __अष्टाङ्गहृदये
करोति कफपित्तास्त्रं मूढवातानुलोमनम् ॥
सोऽत्यभ्यस्तस्तनोः कुर्य्याच्छैथिल्यं तिमिरं भ्रमम् ॥ ११ ॥ और कफ करके संयुक्त हुये रक्तपित्तको करता है और मूढवातको अनुलोमित करता है और अति सेवनेवाले मनुष्यके शरीरमें शिथिलता-अँधेरा-भ्रम- ॥ ११ ॥
कण्डुपाण्डुत्ववीसर्पशोफविस्फोटतृड्ज्वरान् ॥
लवणः स्तम्भसङ्घातबन्धविमापनोऽग्निकृत् ॥ १२ ॥ खाज-पांडुरोग-विसर्प-शोजा-विस्फोट-तुषा-ज्वरको करता है और लवणरस स्तंभ-संघात बंध-विधमापन-अग्निको करता है ॥ १२ ॥
स्नेहनः स्वेदनस्तीक्ष्णो रोचनश्छेदभेदकृत् ॥
सोऽतियुक्तोऽस्त्रपवनं खलतिं पलितं वलिम् ॥ १३॥ और स्नेहन है स्वेदन है तीक्ष्ण है रोचन है छेद और भेदको करता है और अतियुक्त किया लवणरस वातरक्त-खलति-पलित-बलि वातोंका पकना झाई पडना ॥ १३ ॥
तृटकुष्ठविषवीसाञ्जनयेत् क्षपयेबलम् ॥
तिक्तः स्वयमरोचिष्णुररुचिं कृमितृविषम् ॥१४॥ तृषा-कुष्ठ-विष-विसर्पको उपजाता है, और वलको नाश करता है, तिक्त रस आपही मुखकी अरुची-कृमि-तृषा-विष-॥ १४ ॥
कुष्ठमू ज्वरोक्लेशदाहपित्तकफाञ्जयेत् ॥
क्लेदमेदोवसामजशकृन्मूत्रोपशोषणः ॥१५॥ कुष्ठ-मूर्छा-ज्वर-उस्लेश-दाह-पित्त-कफको जीतता है और क्लेद-मेद-बसा-मज्जा-विष्टा मूत्रको शोषता है ॥ १५॥
लघुर्मेध्यो हिमो रूक्षः स्तन्यकण्ठविशोधनः ॥
धातुक्षयानिलव्याधीनतियोगात् करोति सः ॥ १६ ॥ हलका है, पवित्र है, शीतल है, रूखा है, दूधको और कंठको शोधता है, और अतियुक्त किया तिक्त रस धातुक्षयको और वातव्याधिको करता है ॥ १६ ॥
कटुर्गलामयौदर्दकुष्ठालसकशोफजित् ॥
अणावसादनस्नेहमेदःक्लेदोपशोषणः ॥ १७॥ ___ कटुरस-जलरोग-उददरोग-कुष्ट-अलसक-शोजाको जीतता है और व्रणको रोपित करता *" और स्नेह मेद क्लेदको उपशोषित करता है ॥ १७ ॥
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