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(१५२)
अष्टाङ्गहृदये। ये दोनों वचादि और हरिद्रादिगण आमातीसारको नाशते हैं और मेद-कफ-आढयवातदूधदोषको शांतकरते हैं ॥ ३६॥
प्रियगुपुष्पाञ्जनयुग्मपद्मापद्माद्रजो योजनवल्यनन्ता॥
मानद्रुमो मोचरसःसमङ्गा पुन्नागशीतं मदनीयहेतुः ॥३७॥ प्रियंगू-दोनों अंजन-कमलिनी-कमलकेसर-मंजीठ-धमासा-शंभल-मोचरस-लज्जाबंतीरक्तकसर-चंदन-धव ।। ३७ ॥
अम्वष्ठा मधुकं नमस्करीनन्दीवृक्षपलाशकच्छुराः॥
रोधं धातकिबिल्वपेशिके कटुङ्गः कमलोद्भवं रजः ॥ ३८॥ पाठा-मुलहटी-बेलगिरी-लज्जावती-नंदीवृक्ष-के-धमासा-लोध-धवकेफूल–बेलगिरीको मजा-श्योनापाठा-कमलकेसर ॥ ३८ ॥
गणौ प्रियङ्ग्वम्बष्ठादी पक्कातीसारनाशनौ ॥
सन्धानीयौ हितौ पित्ते व्रणानामपि रोपणौ ॥ ३९ ॥ ... ये दोनों प्रियंग्वादि और अंबष्ठादिगण पकेहुये अतीसारको नाशते हैं और संधानको करते हैं और पित्तमें हित हैं और व्रणोंको रोपित करते हैं ॥ ३९ ॥ मुस्तावचाग्निद्विनिशाद्वितिक्ता भल्लातपाठात्रिफलाविशाख्याः॥ कुष्ठं त्रुटी हैमवती च योनिस्तन्यामयना मलपाचनाश्च ॥ ४० ॥
नागरमोथा-वच-चीता-हलदी-दारुहलदी-कुटकी-काकतिक्ता-भिलावा-पाठा-त्रिफलाअतीश-कूठ-इलायची-चोख यह मुस्तादिगण योनिरोग, दूधरोगको नाशता है और मलको पकाता है ॥ ४० ॥ न्यग्रोधपिप्पलसदाफलरोध्रयुग्मं जम्बूद्वयार्जुनकपीतनसोमवल्काः॥ पक्षाम्रवचुलपियालपलाशनन्दीकोलीकदम्बविरलामधुकंमधूकम् ४१ __ वड-पीपल-गूलर-दोनोंलोध-दोनोंजामन-अर्जुन अर्थात् कौह वृक्ष-पारोसापपिल-सफेद खैर-पिलखन-आंब-वेत-पियालवृक्ष-नंदीवृक्ष-बडवेरी-कदंब-तेंटुकी-मुलहटी-महुवाके फूल||४१॥
न्यग्रोधादिगणो बण्यः संग्राही भग्नसाधनः॥
मेदःपित्तात्रतृदाहयोनिरोगनिवर्हणः ॥ ४२ ॥ यह न्यग्रोधादिगण व्रणमें हितहै संग्रही है और भग्नको साधता है और मेददोष रक्तपित्त तृषा दाह योनिरोगको शांतकरता है ॥ ४२ ॥
एलायुग्मतुरुष्ककुष्टफलिनीमांसीजलध्यामकं . स्पृकाचौरकचोचपत्रतगरस्थौणेयजातीरसाः॥
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