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सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (७७) अपथ्यः कटुलावण्याच्छुक्रौजाकेशचक्षुषाम् ॥
हिंगुवातकफानाहशूलघ्नं पित्तकोपनम् ॥ १५० ॥ कटु और लवणपनेसे वीर्य-पराक्रम-बाल-नेत्रमें अपथ्यहै, हींग वात-का-अफरा-शूलको नाशता है और पित्तको कुपित करता है ।। १५०॥
कटुपाकरसं रुच्यं दीपनं पाचनं लघु ॥
कषाया मधुरा पाके रूक्षा विलवणा लघुः ॥१५१ ॥ पाकमें और रसमें कटु है, रुचिमें हितहै, दीपन है पाचन है और हलका है और हरीतकी कसैली है, मधुर है पाकमें रूखीहै लबणरससे रहित है हलकीहै ।। १५१ ॥
दीपनी पाचनी मेध्या वयसः स्थापनी परा।
उष्णवर्या सरायुष्या बुद्धीन्द्रियबलप्रदा ॥ १५२ ।। पिनी है पाचनी है पवित्र है अवस्थाको स्थापित करती है और गरमवीर्यवाली है सर है. आयुमें हित है और बुद्धि-इंद्रिय-बल-इन्होंको देती है ।। १५२ ॥
कुष्टवैवर्ण्यवस्वर्यपुराणविषमज्वरान् ।
शिरोऽक्षिपाण्डुहृद्रोगकामलाग्रहणीगदान् ॥ १५३ ।। कुष्ठ-विवर्णता-स्वररोग-पुराना विषमज्वर-शिरोरोग-नेत्ररोग-पांडुरोग-हृद्रोग-कामला-- संग्रहणी रोग ॥ १५३॥
सशोषशोफातीसारमेदमोहवभिक्रिमीन् ।
श्वासकासप्रसेकाशःप्लीहानाहगरोदरम् ॥ १५४ ॥ शोप-शोजा-अतिसार-मेद-मोह छर्दि-कृमिरोग-श्वास-खाँसी-प्रसेक-बवासीर-लीहरोगअफारा-विपरोग-उदररोग ॥ १५४ ॥
विबन्ध स्त्रोतसां गुल्ममूरुस्तम्भमरोचकम् ॥
हरीतकी जयेयधीस्तांस्तांश्च कफवातजान् ॥ १५५॥ स्रोतोंका विबंध-गुल्म-ऊरुस्तंभ-अरोचक-अनेक प्रकारके कफ वातजरोगोंको हरीतकी जीतती है हरडका नाम हरीतकी है ॥ १५५॥
तद्वदामलकं शीतमम्लं पित्तकफापहम् ॥
कटु पाके हिमं केश्यमक्षमीषञ्च तद्गुणम् ॥ १५६ ॥ और इस हरडके समान गुणोंवाला आमला है. परंतु शीतल है खट्टा है पित्त और कफको नाशता है, और इसके कछुक गुणोंसे संयुक्त बहेडा है, परंतु पाकमें कटु है शीतल है बालों में
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