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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (७७) अपथ्यः कटुलावण्याच्छुक्रौजाकेशचक्षुषाम् ॥ हिंगुवातकफानाहशूलघ्नं पित्तकोपनम् ॥ १५० ॥ कटु और लवणपनेसे वीर्य-पराक्रम-बाल-नेत्रमें अपथ्यहै, हींग वात-का-अफरा-शूलको नाशता है और पित्तको कुपित करता है ।। १५०॥ कटुपाकरसं रुच्यं दीपनं पाचनं लघु ॥ कषाया मधुरा पाके रूक्षा विलवणा लघुः ॥१५१ ॥ पाकमें और रसमें कटु है, रुचिमें हितहै, दीपन है पाचन है और हलका है और हरीतकी कसैली है, मधुर है पाकमें रूखीहै लबणरससे रहित है हलकीहै ।। १५१ ॥ दीपनी पाचनी मेध्या वयसः स्थापनी परा। उष्णवर्या सरायुष्या बुद्धीन्द्रियबलप्रदा ॥ १५२ ।। पिनी है पाचनी है पवित्र है अवस्थाको स्थापित करती है और गरमवीर्यवाली है सर है. आयुमें हित है और बुद्धि-इंद्रिय-बल-इन्होंको देती है ।। १५२ ॥ कुष्टवैवर्ण्यवस्वर्यपुराणविषमज्वरान् । शिरोऽक्षिपाण्डुहृद्रोगकामलाग्रहणीगदान् ॥ १५३ ।। कुष्ठ-विवर्णता-स्वररोग-पुराना विषमज्वर-शिरोरोग-नेत्ररोग-पांडुरोग-हृद्रोग-कामला-- संग्रहणी रोग ॥ १५३॥ सशोषशोफातीसारमेदमोहवभिक्रिमीन् । श्वासकासप्रसेकाशःप्लीहानाहगरोदरम् ॥ १५४ ॥ शोप-शोजा-अतिसार-मेद-मोह छर्दि-कृमिरोग-श्वास-खाँसी-प्रसेक-बवासीर-लीहरोगअफारा-विपरोग-उदररोग ॥ १५४ ॥ विबन्ध स्त्रोतसां गुल्ममूरुस्तम्भमरोचकम् ॥ हरीतकी जयेयधीस्तांस्तांश्च कफवातजान् ॥ १५५॥ स्रोतोंका विबंध-गुल्म-ऊरुस्तंभ-अरोचक-अनेक प्रकारके कफ वातजरोगोंको हरीतकी जीतती है हरडका नाम हरीतकी है ॥ १५५॥ तद्वदामलकं शीतमम्लं पित्तकफापहम् ॥ कटु पाके हिमं केश्यमक्षमीषञ्च तद्गुणम् ॥ १५६ ॥ और इस हरडके समान गुणोंवाला आमला है. परंतु शीतल है खट्टा है पित्त और कफको नाशता है, और इसके कछुक गुणोंसे संयुक्त बहेडा है, परंतु पाकमें कटु है शीतल है बालों में For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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