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अनेकान्त 671, जनवरी-मार्च 2014 मरण, बाल पंडित मरण, बाल मरण तथा बालबाल मरण पर ही संक्षेप में चर्चा करना अभीष्ट माना हैं और उनमें भी राग-द्वेषादि अशुभ भावों से रहित समाहित चित्त की दृष्टि से यदि विचार किया जाए, तो वह पूर्ण रूप से तो केवली भगवान के शरीर छोड़ने में अर्थात् पंडितपंडित मरण में ही होता है, पर राग-द्वेषादि अशुभ भावों से रहित आंशिक समाहित चित्त पंडित मरण व बाल पंडित मरण करने वालों के भी होता है, इसलिए मरण-काल में आंशिक समाधि उनकी भी होती है, लेकिन बाल मरण तथा बालबाल मरण में राग-द्वेषादि अशुभ भावों से रहित समाहित चित्त आंशिक रूप से भी नहीं हो पाता, इसलिए मरण-काल में उनकी आंशिक समाधि भी नहीं होती है।
भगवती आराधना की कुछ प्रतियों में उपलब्ध आगे लिखी कारिका में वर्णन आता है कि पंडितपंडित मरण, पंडित मरण, बाल पंडित मरण की जिनेन्द्रदेव ने प्रशंसा की है, जिसका भाव यह है कि उपर्युक्त तीनों मरण जिनपरम्परानुसार प्रशस्तमरण हैं. यथा -
पंडिदपंडिदमरणं च पंडिदं बालपंडिदं चेव।
एदाणि तिण्णि मरणाणि जिणा णिच्चं पसंसति।।
आचार्य शिवार्य की मान्यता है कि उपर्युक्त में से पंडितपंडितमरण उन केवली दिव्यात्माओं को होता है, जिनके कषाय नष्ट हो गए हैं व जो विरताविरत जीव हैं, वे तृतीय मरण अर्थात् बाल पंडित मरण से मृत्यु पाते हैं, इसीलिए तो भगवती आराधना में उन्होंने लिखा है कि -
पंडिदपंडितमरणे खीणकसाया मरंति केवलिणो। विरदाविरदा जीवा मरंति तदियेण मरणेण।।
- भगवती आराधना, २७ ये विरताविरत कौन है ? .... इनके बारे में आचार्य कहते हैं कि जो समस्त असंयम का त्याग करने में असमर्थ है व जो स्थूल हिंसा, स्थूल, झूठ, स्थूल चोरी, स्थूल कुशील और स्थूल परिग्रह आदि पांच पापों का त्याग करता है, उसे देशविरत या विरताविरत कहते हैं और जो देशविरति के भी एक देश से विरत होता है अर्थात् अपनी शक्ति के अनुसार हिंसा आदि का त्याग करता है, ऐसा सम्यग्दृष्टि एक देशविरत कहा जाता है; इस प्रकार जो समस्त या एकदेश गृहस्थधर्म का पालक श्रावक होता है, उसके मरण को जिनागम