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अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014
प्रहरं त्रिभागं च प्रथमं धर्ममाचरेत द्वितीयं तु ततो वित्तं तृतीय कामसेवने
मनुष्य को दिन के तीन भाग करके पहले विभाग को धर्मानुष्ठान में और दूसरे को धन कमाने में एवं तीसरे को कामसेवन में उपयोग करना चाहिए।
वृहस्पति - जिनकी चित्तवृत्तियाँ धार्मिक अनुष्ठानों में सदा लगी रहती हैं वे काम से तथा अर्थ से विशष विरक्त रहते है। क्योंकि धन संचय करने में पाप लगता है।
वैराग्य भक्तिभर निर्जित कामिताय प्रेयान् भविष्यति कथं विषयांपभोगः
मृष्टान्न भोजनभर क्षपितक्षुधाय रूच्यो भविष्यति कथं मधुरोप्यपूपः
वैराग्य एवं भक्ति से परिपूर्ण तथा सभी प्रकार की कामनाओं को जीत लेने वाले व्यक्ति को स्रक चंदन वनिता आदि विठ्ठायों का उपयोग कैसे प्रिय हो सकता है अर्थात् कदापि नहीं। (सूक्तिमुक्तावलि, श्लोक ३२) क्षत्रचूडामणि में विरचित कथा का संक्षिप्त सार :
क्षत्रचूडामणि कृत आचार्य वादीभसिंह सूरी कृत एक सरल भाषा में रचित काव्य शैली में लिखी गई एक ऐसी नीतिपरक साहित्यिक रचना है, जिसके प्रत्येक श्लोक में कथानक के साथ-साथ पाठकों को कुछ न कुछ राजनैतिक धार्मिक और सदाचार प्रेरक संदेश भी दिया गया है। इस कृति के कथानक तद्भव मोक्षगामी महाराजा जीवनधर कुमार हैं। इस कारण इसका अपर नाम जीवन्धर चरित भी है। इसमें पाठकों को दिये गये संदेश सामाजिक सटीक और सोदाहरण होने से अत्यन्त प्रभावी हो गये है।
कथानक की कथा प्रमुख रूप से चौदह लम्बों में विभक्त की गई है। जिसका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार प्रस्तुत किया जा रहा हैं। जम्बूदीप के भरतक्षेत्र में हेमांगदा नामका देश है इस नगर का राजा सत्यन्धर है। उसकी दूसरी विजयलक्ष्मी के समान विजया नामक रानी है राजा सत्यन्धर का काष्ठांगारक नामका मंत्री था।
एक बार रानी दो स्वप्न देखे पहला स्वप्न था कि राजा सत्यन्धर ने मेरे लिए आठ घण्टाओं से युक्त मुकुट दिया है और दूसरा स्वप्न था कि वह ि