Book Title: Anekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 339
________________ अनेकान्त 67/4, अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 51 सोचना गलत है; हर क्रिया के अदृष्ट फल अवश्य होते हैं जिन्हें हम भविष्य में भोगते हैं। हमें हर क्रिया को सोच-समझकर करना चाहिए। कर्मफल: कर्म फल का स्वरूप जानने के लिए हमें यह जानना होगा कि प्राणी कर्मों का फल कैसे भोगता है। प्राणी दो द्रव्यों से बना है- आत्मा और जीवित मैटर। यहाँ पर आत्मा के संयोग में आने वाले मैटर को जीवित मैटर कहा है। प्राणी के भौतिक और कार्मण शरीर का मैटर जीवित मैटर है क्योंकि भौतिक और कार्मण शरीर का आत्मा से संयोग है। जब मैं यह कहता हूँ कि मैं अपने कर्मो का फल भोग रहा हूँ, इस कथन का अर्थ है कि मेरी आत्मा और मेरा भौतिक शरीर मेरे कर्मों के फल भोग रहे हैं। अब प्रश्न उठता है कि आत्मा और भौतिक शरीर कर्मों के फल कैसे भोगते हैं? आत्मा और जीवित मैटर के कुछ -गुण हैं जिनकी पर्याय/अवस्था सदैव परिवर्तित होती रहती है। कर्मो के फल भोगने पर आत्मा और जीवित मैटर के गुणों की पूर्व पर्याय का व्यय और उत्तर पर्याय का उत्पाद होता रहता है। इसलिए मैं अपने कर्मों के फल अपनी आत्मा और अपने जीवित मैटर के गुणों की पर्याय में परिवर्तन करके भोगता हूँ।कर्मो के फलने के कारण आत्मा और जीवित मैटर के गुणों की पर्याय में परिवर्तन होता रहता है। कर्म का फलना केवल आत्मा और जीवित मैटर के गुणों की पर्याय में परिवर्तन करता है और इसके अतिरिक्त कछ नहीं करता। इस तथ्य पर ध्यान दें कि कर्म यूनिवर्सल होते हैं और आत्मा और मैटर के गुण भी यूनिवर्सल होते हैं। आत्मा और मैटर के गुण स्थान और समय के साथ नहीं बदलते। कर्म की चार घातीय प्रकृतियाँ दर्शनावरणीय, ज्ञानावरणीय, वीर्यावरणीय (अंतराय) और मोहनीय आत्मा के चार गुणों, यानी दर्शन, ज्ञान, वीर्य और सुख, की पर्याय में परिवर्तन करती है। कर्म की चार अघातीय प्रकृतियाँ नाम, वेदनीय, गोत्र और आयु जीवित मैटर के चार प्राण से संबन्धित योग्यताओं, यानी इन्द्रियों (स्पर्श, रस, गंध, चक्षु और घ्राण), मन, वचन और काय की भौतिक क्रिया, श्वासोच्छवास और आयु की पर्याय में परिवर्तन करती है। कार्मण शरीर की पर्याय में परिवर्तन का विवरण आगे दिया गया है। आत्मा के ज्ञान गुण के उदाहरण द्वारा कर्मफल का स्वरूप स्पष्ट किया जा सकता है। कल्पना करो कि तुमने एक अध्यापक की वार्ता सुनकर

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