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अनेकान्त 67/4, अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 निर्भर करते हैं और क्रिया के मूल और गौण साधन द्वारा निर्धारित होती है। यह सत्य है कि हमारी वर्तमान क्रिया हमारे पूर्वकृत कर्म नियंत्रित करते हैं, परन्तु यह पूर्ण सत्य नहीं है, अपूर्ण सत्य है। प्रश्न उठता है कि क्या क्रिया की प्रकृति भी पूर्वकृत कर्म नियंत्रित करते हैं? तुम इस लेख को पढ़ने की क्रिया कर रहे हो। तुम्हारे इस लेख को पढ़ने की क्रिया की प्रकृति इस क्रिया के मूल साधन पर, यानी इस लेख पर, और गौण साधनों (द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव) पर निर्भर करती है। क्या तुम्हारे द्वारा इस लेख का इस जगह और इस समय पढ़ना भी तुम्हारे पूर्वकृत कर्म द्वारा नियंत्रित था? क्या तुम्हारे पूर्वकृत कर्म में यह जानकारी संचित थी कि तुम्हारी क्रिया के ये ही साधन बनेंगे, यानी तुम इस लेख को इस जगह और इस समय पढोगे? यदि इस प्रश्न का उत्तर हाँ माना जाए, तो यह भी मानना पड़ेगा कि तुम्हारे इस समय मनुष्य गति में होने की जानकारी तुम्हारे पूर्वकृत कर्म में संचित थी। परन्तु यह जानकारी कि तुम इस भव में मनुष्य होंगे तुम्हारी पिछले भव की आयु के दो-तिहाई भाग बीतने के बाद ही कार्मण शरीर में संचित होती है, इस से पहले नहीं। इसलिए इससे पहले के पूर्वकृत कर्मों को आत्मा के साथ बंधते समय यह जानकारी नहीं थी कि तुम्हारी क्रिया के ये ही साधन बनेंगे। इसलिए यह मानना कि क्रिया के साधन की जानकारी पूर्वकृत कर्म में संचित रहती है तर्क संगत नहीं है।
तुम अपने पुरुषार्थ द्वारा कर्म फलन के साधन को चुनने में सक्षम हो। कछ व्यक्तियों की यह मान्यता है कि प्रत्येक द्रव्य की पर्याय सुनिश्चित है, इसलिए साधन को पुरुषार्थ द्वारा चुना नहीं जाता, साधन (निमित्त) स्वयमेव उपस्थित हो जाते हैं। इस मान्यता के अनुसार पुरुषार्थ की मनुष्य जीवन की दैनिक क्रियाओं में कोई भूमिका नहीं है। अतिरिक्त प्रश्न -
___ यह संभव है कि कुछ व्यक्ति इस निष्कर्ष से कि दृष्ट फल कर्म सिद्धांत द्वारा नियंत्रित कर्मों के फल नहीं है पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हों क्योंकि यह निष्कर्ष इस मान्यता पर आधारित है कि कर्मफल केवल आत्मा और जीवित मैटर के गुणों की पर्याय में परिवर्तन करते हैं। उन व्यक्तियों का मानना है कि धन-दौलत, सुख-दुःख के साधन, भौतिक सामग्री और उच्च-नीच कुल कर्म सिद्धांत द्वारा नियंत्रित कर्मो के फल हैं। उनका ऐसा मानने से