Book Title: Anekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 370
________________ 82 अनेकान्त 67/4, अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 इसमें किया गया है। द्रोणमुख, पट्टन, कर्वट, खेट, मटम्ब, आश्रम, निगम आदि विभिन्न प्रकार के नगरों का संक्षिप्त विवेचन के साथ राजगृह, चमपा आदि महत्त्वपूर्ण नगरों का इसमें वर्णन है। इसमें विभिन्न राजमहलों का भी उल्लेख आया है। उन्हीं संदर्भ में भवन निर्माण कला का वर्णन करते हुए भवन के विभिन्न प्रमुख अंगों-द्वार, स्तम्भ, गर्भगृह, अगासी, अट्टालिका, प्रमदवन, मण्डप, उपस्थानशाला, अन्तःपुर, शयनागार, भोजनशाला, प्रसूतिगृह, भाण्डागार, श्रीगृह व चारकशाला आदि की स्थिति व्यक्त की गई है। ज्ञाताधर्मकथांग में सामाजिक जीवन : ज्ञाताधर्मकथांग में सामाजिक स्थिति से जुड़े विभिन्न पहलुओं को उजागर किया है। यहाँ बतलाया गया है कि तत्कालीन परिवार में पति-पत्नी के अलावा माता-पिता, भाई-बहन, पुत्र-पुत्री आदि रहते थे। परिवार मुखिया वयोवृद्ध सदस्य या पिता होता था और सब परिजन उसकी आज्ञा का पालन करते थे। सामाजिक शिष्टाचार में अतिथि-सत्कार को अत्यधिक महत्व दिया जाता था। जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त विविध संस्कारों का विधान भारतीय संस्कृति में रहा है। जन्म, नामकरण, राज्याभिषेक, विवाह व दीक्षा आदि संस्कारों का वर्णन भी यहां प्राप्त होता है। ज्ञाताधर्मकथांग में वर्णित नारी जहाँ एक ओर अपने शीलाचार और सतीत्व के कारण पुरुष तो क्या देवताओं तक की आराध्य है वहीं दूसरी तरफ वह व्यभिचारिणी स्त्री के रूप में प्रकट हुई है। वह साध्वी के रूप में मानव को आत्मकल्याण का पथ दिखलाती है तो गणिका के रूप में जनमानस के बीच कला की उपासिका बनकर उभरती है।३।। समाज अप्रत्यक्ष रूप से ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चार वर्णो में विभक्त था। बहुपत्नीकवाद, वेश्यावृत्ति, देहजप्रथा, दासप्रथा, हत्या, अपहरण, लूटपाट आदि बुराइयाँ समाज के भाल पर कलंक थीं, वहीं दूसरी ओर समाज में प्रचलित आश्रम-व्यवस्था व्यक्ति को चरम लक्ष्य-मोक्ष की ओर बढ़ने के लिए अभिप्रेरित करती थी। ज्ञाताधर्मकथांग और अर्थव्यवस्था : ‘अर्थ’ जीवन रक्त के समाज है, इसके बिना सांस्कृतिक अभ्युत्थान की कल्पना नहीं की जा सकती है। अर्थव्यवस्था की दिशा और दशा का

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