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अनेकान्त 67/4, अक्टूबर-दिसम्बर, 2014
प्राकृतभाषा का संक्षिप्त ऐतिहासिक परिचय
- मनोज कुमार, शोध छात्र
भारतीय आर्य भाषा:
मानव जन्म के साथ भाषा का विस्तार एवं विकास अवश्य ही हुआ है। इसी क्रम में भाषा के अनेक परिवार विकसित हुए हैं। उन परिवारों में भारोपीय परिवार प्राकृत भाषा से सम्बन्धित है। भाषा के १. ईरानी २. दरद ३. आर्य परिवार हैं। इन परिवारों में से प्राकृत भाषा आर्य परिवार से सम्बन्ध रखती है। भारतीय आर्य भाषा परिवार के तीन भाग हैं।
प्राचीन भारतीय आर्य भाषा परिवार (१६०० ई.प.से ६०० ई.प.तक) मध्यकालीन आर्य भाषा काल (६०० ई. पू. से १०० ई.पू तक) वर्तमान आर्य भाषा काल (१०० ई. पू. से वर्तमान समय तक) प्राकृत भाषा का इन तीनों कालों से किसी न किसी रूप से सम्बन्ध बना हुआ है। भाषा परिवर्तन:
शब्द ध्वनि, वाक्य और अर्थ को आधार मानकर भाषा में परिवर्तन होता है। श्रुति सुख और वचन सुख को ध्यान में रखकर कहीं ध्वनि परिवर्तन
और कहीं शब्द परिवर्तन होता है उदाहरण के लिये वह मेरे साथ ही है, इस वाक्य में हम वचन सुख एवं श्रुति सुख दोनों को ध्यान में रखते हुये कहते हैं, वह मेरा साथी है। प्राचीन आर्य भाषा:
वैदिक भाषा प्राचीन आर्य भाषा है। प्राचीन आर्य भाषा का स्वरूप ऋग्वेद की ऋचाओं में सुरक्षित है। वेद आर्यो के प्रमुख ग्रन्थ हैं। वेद ग्रन्थों में लोक भाषा की विशेषता जो भी प्राप्त होती है वे भी भाषा की पुरातनता को सिद्ध करती है। ध्वान्यात्मक और व्याकरणात्मक सरलीकरण की प्रवृत्ति के कारण प्राकृत भाषा लम्बे समय तक जन सामान्य के बोल चाल की भाषा रही है। महावीर, बुद्ध तथा उनके चारों ओर दूर-दूर तक के विशाल जन समूह को मातृभाषा के रूप में प्राकृत ही उपलब्ध हुई। जिस प्रकार वैदिक भाषा को आर्य संस्कृति की भाषा होने का गौरव प्राप्त है, उसी प्रकार प्राकृत भाषा को आगम