Book Title: Anekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 379
________________ 91 अनेकान्त 67/4, अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 थी, उसे अपभ्रंश भाषा ने दूर करने का प्रयत्न किया। कारको विभक्तियों, प्रत्ययों के प्रयोग में अपभ्रंश निरन्तर प्राकृत से सरल होती गयी है। अपभ्रंश प्राकृत, हिन्दी भाषा को जोड़ने वाली कड़ी है। महाकवि स्वयंभू अपभ्रंश का आदिकवि कहा जा सकता है। इसके बाद महाकवि रइधू तक कई महाकवियों ने इस भाषा को समद्ध किया।६ ।। अर्धमागधी प्राकृत का स्थान आदि युग की प्राकृत में है। इस प्राकृत की कुछ अपनी विशेषताएं है। भगवान महावीर ने अपना व्याख्यान अर्धमागधी प्राकृत भाषा में ही दिया था, आगम इस बात का उल्लेख करते हैं। इस समय यह भाषा लोक भाषा के रूप में प्रचलित थी। श्वेताम्बर परम्परा में मान्य आगम जिन का कि पूर्व उल्लेख किया जा चुका है वे इसी भाषा में हैं। समीक्षा: किसी भी भाषा के व्याकरण को समझने के लिये उसके व्याकरण पक्ष का ज्ञान होना भी अति आवश्यक होता है। व्याकरण के अन्तर्गत स्वर का ज्ञान, व्यंजन का ज्ञान, स्वर परिवर्तन, व्यंजन परिवर्तन, संज्ञा विघान, संधि, समास, शब्द रूप, धातु रूप इन सब का ज्ञान होना अति आवश्यक है, इनके ज्ञान के बिना आगम शास्त्र की विशेषता को समझा नहीं जा सकता। जब उस शास्त्र की भाषा की विशेषता को नहीं समझा जा सकता, तब उसके अंदर निहित तत्त्व का ज्ञान कैसे किया जा सकता है। संदर्भ : १. प्राकृत स्वयं शिक्षक, पृ.१ २. प्राकृत हिन्दी शब्द कोश भाग-१ ३. प्राकृत स्वयं शिक्षक, पृ.३ ४. प्राकृत हिन्दी शब्द कोष, भाग-१, पृ. १७ ५. प्राकृत हिन्दी शब्द कोष, भाग-१, पृ. १९ ६. भगवं च णं अद्धमागहीए भासाए धम्म आइक्खइ-समवायांगसूत्र पृ.९८ ७. महहद्ध विसयभासानिबद्धं अद्धमागही, निशीथसूत्र ८. प्राकृत भाषा और साहित्य का इतिहास, पृ. ३५ ९. प्राकृत स्वयं शिक्षक पृ.१० १०. वही, पृ. १० ११. प्राकृत हिन्दी शब्द कोश, पृ.१० १२. प्रा. हि. श. कोश, पृ. ३३ १३. वही, पृ. १२ १४. प्राकृत स्वयं शिक्षक, पृ. १२ १५. प्राकृत स्वयं शिक्षक, पृ.१३ १६. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश - गुरु गोविंद सिंह रेलीजिएस स्टडीज विभाग, पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला-१४७००२ पंजाब

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